एफआईआई को मुंचुसेन सिंड्रोम(Munchausen syndrome) के नाम से भी जाना जाता है। मंचुसेन सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है, जिसमें एक व्यक्ति बीमार होने का नाटक करता है या खुद को बीमारी या चोट पहुँचता है। हालांकि हेल्थ-केयर पेशेवर फेब्रिकेटिड या इन्ड्यूस्ड इलनेस शब्द के इस्तेमाल को ही वरीयता देते हैं, क्योंकि मुंचुसेन सिंड्रोम बाई प्रॉक्सी शब्द का उपयोग उस व्यक्ति पर जोर देता है जो पीड़ित बच्चे की बजाय खुद को ही चोटिल या घायल या बीमार दिखाता है।
मुंचुसेन सिंड्रोम बाई प्रॉक्सी शब्द का इस्तेमाल अभी भी अन्य देशों में व्यापक रूप से किया जाता है।
मीडिया में FII एक बड़ा बवाल का मुद्दा रहा है। इस विषय पर टिप्पणियां करने वाले लोग हकीक़त में इसे असल में कुछ मानने से ही इंकार करते हैं। मगर इस स्थिति को सही साबित करने के लिए कई सारे प्रमाण हैं। प्रमाण के तौर पर 20 से ज्यादा देशों में सौ से ज्यादा दर्ज मामलों में बच्चों की आपबीती, छुपे हुए कैमरों से की गई रिकॉर्डिंग मौजूद है। खुद बच्चों की मां या उनका ख्याल रखने वाले नौकरों के इकबालिया बयान भी हैं।
FII में व्यवहार
FII शब्द की व्याख्या की जाए तो बड़ी संख्या में मामले और व्यवहार मिलेंगे, जिनमें सम्मिलित हैं:
- बच्चे की देखरेख करने वाली मां या उसका ख़याल रखने वाले व्यक्ति ने ही पूरी तरह स्वस्थ बच्चे को ये समझाया कि वो बीमार है
- बच्चे की मां या बच्चे की देखभाल करने वाला व्यक्ति, जो अपने बच्चे की बीमारी के लक्षणों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर या झूठ बोलकर बताते हैं
- बच्चों की जांच के परिणामों में छेड़खानी करने वाली मां या उसका ख़याल रखने वाले व्यक्ति। जैसे बच्चे में मधुमेह की बीमारी दिखाने के लिए मूत्र के नमूने में ग्लूकोज मिला देना।
- एक माँ या अन्य देखभाल कर्ता जो जानबूझकर बीमारी के लक्षणों को प्रेरित करते हैं, उदाहरण के लिए उसके बच्चे को अनावश्यक दवा या अन्य पदार्थों के साथ जहर देकर
काल्पनिक या उत्प्रेरित बीमारी के लक्षणों के बारे में और जानें।
काल्पनिक या उत्प्रेरित बीमारी कितनी सामान्य है?
ये कितना ज्यादा फैल चुका है, इस बारे में अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। ज्यादातर मामलों की रिपोर्ट तक नहीं की जाती।
हर उम्र के बच्चे FII में सम्मिलित किए जा सकते हैं। मगर ज़्यादातर ये पांच साल या इससे कम उम्र के बच्चों के साथ होता है।
बच्चों की मां ही एफआईआई के नब्बे फीसदी मामलों में शोषण के लिए दोषी निकलती हैं। मगर बच्चे के पिता, पालन करने वाले अभिभावक, दादा-दादी, अभिभावक, नौकर या व्यावसायिक तौर पर बच्चों की देखभाल करने वाले भी दोषी पाए गए।
ऐसा करने का कारण
FII क्यों होता है, इसे पूरी तरह समझा नहीं जा सका है।
कई मामलों में मां सिर्फ ख्याल रखने वाली मां कहलाने या सुनने के लिए ही ऐसी हरकतें करने लगती हैं।
अधिकांश मांएं जो FII के मामलों में शामिल हुईं, उनमें उनका अनसुलझे मनोवैज्ञानिक और व्यवहार संबंधी समस्याओं का एक पिछला इतिहास रहा है। जैसे कि आत्मघात या ड्रग या शराब के दुरुपयोग का इतिहास, या किसी अन्य बच्चे की मौत का अनुभव।
अलबत्ता ऐसा पाया गया है कि जो माएँ FII में शामिल हैं, उनमें से ज्यादातर में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या जैसे बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसॉर्डर की समस्या को नोटिस किया गया। इसमें भावुकता, चंचलता या फिर सोचने में परेशानी जैसे लक्षण होते हैं।
इस तरह के भी कई सारे मामले सामने आए, जिनमें काल्पनिक या उत्प्रेरित बीमारी को पैसों की कमी के कारण बनाया गया था। जैसे फायदा उठाने के लिए विकलांगता लाभ की बात कहना।
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बच्चों का बचाव
यदि आप नर्सरी में काम करने वाले या शिक्षक हैं, जो हर वक्त बच्चों के साथ रहते हैं तो आपको बच्चों के बारे में ऐसे व्यक्ति को सूचित करना चाहिए, जो बच्चों को बचा सकता है। अगर आप यह नहीं जानते कि आपको किससे बात करनी चाहिए तो अपने दफ्तर के किसी अनुभवी व्यक्ति को यह बताना चाहिए।
अगर आपको लगता है कि कोई व्यक्ति अपने बच्चे की बीमारी की कल्पना कर रहा है तो जरूरी नहीं कि आप उसे बताएं कि आप यह जानते हैं। अगर आप ऐसा करेंगे तो उस व्यक्ति को बुरे बर्ताव का सबूत मिटाने का समय मिल जाएगा।
काल्पनिक या उत्प्रेरित बीमारी की पहचान के लिए और पढ़े।
इलाज
FII के मामलों में पहला लक्ष्य बच्चे को सुरक्षा देना है। इसमें जिम्मेदार व्यक्ति की देखभाल से बच्चे को हटाया जा सकता है। ऐसे मामलों में बच्चे के माता-पिता और परिजनों को बच्चे से मिलने से रोक दिया जाता है।
जब बच्चे की ज़िम्मेदारी मां-बाप और परिजनों से हट जाती है तो उनका इलाज करना आसान हो सकता है। वैसे FII के मामलों में माता-पिता और परिजनों का इलाज करना मुश्किल है, क्योंकि बहुत से लोग यह समझ ही नहीं पाते कि उनका व्यवहार गलत है। ऐसे मामलों में बच्चों को उनकी देखभाल से हटा लिया जाता है।
काल्पनिक या उत्प्रेरित बीमारी के इलाज के बारे में जानें।
भविष्य में असर
बच्चों की काल्पनिक बीमारी की वजह से बीमारी का असर बच्चे के दिमाग और शरीर पर लंबे समय तक रह सकता है।
एक शोध के मुताबिक, इस बीमारी से पीड़ित चार में से एक को दो सालों बाद भी दिमाग और शरीर पर इस बीमारी का असर बना रहा।
माना जाता है कि ज्यादा और बेकार की दवाइयों की वजह से 16 में से लगभग एक की मौत और और 14 में से एक लंबे समय तक या स्थायी तौर पर चोट का अनुभव करता है।
लक्षण
काल्पनिक या उत्प्रेरित बीमारी में होने वाले व्यवहार कई रूपों में होते हैं। मगर इसके कई चेतावनी संकेत हैं।
चेतावनी के संकेत
चेतावनी के संकेत यह इशारा कर सकते हैं कि बच्चे के साथ ऐसा किया जा रहा है, जिसे मुंचुसेन सिंड्रोम बाई प्रॉक्सी भी कहते हैं। इसमें शामिल हैं:
- माता-पिता या परिजन ऐसे लक्षणों की जानकारी देते हैं, जिन्हें किसी ज्ञात चिकित्सा स्थिति द्वारा नहीं समझाया जाता
- शरीर की जांच और प्रयोगशाला के टेस्ट में इन संकेतों को पहचाना नहीं जा सकता
- बीमार हुआ बच्चा दवाइयों और इलाज के प्रति खास तौर पर उदासीन रहता है
- केवल माता-पिता या देखभाल कर्ता ही उन लक्षणों को देखने का दावा करते हैं
- अगर बताई गई स्वास्थ्य की समस्याओं का समाधान कर लिया जाता है तो माता-पिता और परिजन बीमारी के दूसरे लक्षण बताने लगते हैं
- बच्चे की दिनचर्या उसकी बीमारी के हिसाब से कहीं ज़्यादा सीमित हो जाती है, जैसे मसलन वे स्कूल नहीं जाते या अगर ठीक से चल सकते हैं, फिर भी लैग ब्रेसेस पहनते हैं
- माता-पिता या देखभाल कर्ता अलग-अलग अनुभवी व्यक्तियों से मिलकर बहुत सारी सेहत से संबंधित सलाह लेते रहते हैं
- अक्सर माता-पिता या अभिभावक को इलाज के बारे में अच्छी जानकारी होती है
- माता-पिता और परिजन बच्चे की देखभाल के लिए खुद को जितना सावधान दिखाते हैं, असल में वे सेहत को लेकर उतने सावधान होते नहीं हैं, हालांकि वह लगातार अस्पताल में बच्चे के साथ रहते हैं
- माता-पिता और परिजन आम तौर पर अस्पताल के स्टाफ के साथ दोस्ती जैसा व्यवहार करने की कोशिश करते हैं, लेकिन अगर उनसे सहमति न जताई जाए तो बहुत जल्दी लड़ाई-झगड़े पर भी उतर आते हैं
- दूसरे पेरेंट को बच्चे की देखभाल के बारे में ज़्यादा भगेदारी नहीं होती
- अक्सर माता-पिता और परिजन मेडिकल स्टाफ को बच्चे की दर्दभरी जांच या इलाज करने पर जोर डालते हैं। (ऐसी जांच जिन्हें बाकी माता-पिता आम तौर पर सिर्फ तभी करने के लिए राजी होते हैं, जब यह बहुत ही जरूरी हो)
- ऐसे माता-पिता और परिजन का एक इतिहास होता है कि वे जल्दी- जल्दी डॉक्टर और इलाज के लिए अस्पताल बदलते रहते हैं, खासतौर पर जब मेडिकल स्टाफ उनसे सहमत नहीं होते
- बच्चे के लक्षण काल्पनिक हैं, इसके बहुत से सबूत हैं, उदाहरण के लिए, अगर जांच में यह पता चले कि बच्चे की नैपी में लगा हुआ खून मासिक धर्म का है
दुर्व्यवहार का स्वरूप और स्तर
FII में पाए जाने वाले दुर्व्यवहार के प्रकार आमतौर पर 6 श्रेणियों में से एक में आते हैं। ये सबसे कम गंभीर से लेकर अधिक से अधिक गंभीर तक हो सकते हैं।
FII के गंभीर मामलों में माता-पिता और परिजनों में कई तरह के या सभी तरह के वर्गों के व्यवहार देखे जा सकते हैं।
वर्ग ये हो सकते हैं:
- बीमार दिखाने के लिए काल्पनिक लक्षण दिखाना और परीक्षण के परिणामों में हेरफेर करना
- जानबूझकर बच्चे को पोषक तत्वों को ना देना या पोषण के साथ छेड़छाड़ करना
- लक्षणों को बढ़ाने के लिए अन्य साधनों का उपयोग जैसे ज़हर देना, गला दबाना, त्वचा में जलन के लिए रसायन लगाना
- बच्चे को कम मात्रा में जहर देना, उदाहरण के लिए डायरिया को बढ़ाने के लिए लैक्सटिव देना
- बच्चों को तेज़ जहर देना, उदाहरण के लिए खून में मधुमेह का स्तर कम करने के लिए इंसुलिन देना
- बच्चे को जानबूझकर बेहोश करने के लिए गला दबाना
एफआईआई के रिपोर्ट किए गए मामलों में दी गई जानकारी में कुछ सबूत सामने आए:
- बच्चों के लक्षणों के बारे में माता-पिता और परिजन झूठ बोलते हैं
- माता-पिता और परिजन जानबूझकर बीमारी के नकली सबूत बनाने के लिए की गई जांच में हेरा-फेरी कर देते हैं, उदाहरण के लिए मूत्र के नमूने में खून या ग्लूकोज मिलाकर, अपना खून बच्चों के कपड़ों पर लगाकर यह बताना कि यह एक असामान्य रक्तस्राव है, बुखार दिखाने के लिए असामान्य तरीके से थर्मामीटर को गर्म कर देना
- गलत दवाइयाँ या जहर देकर बच्चों को बीमार बना देना।
- बच्चे के घावों को गंदा करना ताकि वे सड़ जाएं या बच्चे को गंदगी या अपशिष्ट पदार्थों का इंजेक्शन देना
- बच्चे का दम घोंट कर बेहोशी की स्थिति में लाना
- स्थिति को और बेकार करने के लिए इलाज ना करना या गलत इलाज करना
- बच्चे को खाना ना देना, जिसकी वजह से बच्चा शारीरिक और दिमागी तौर पर बीमार हो जाता है
बताए गए लक्षण
काल्पनिक और उत्प्रेरित बीमारी में माता-पिता और परिजन ऐसे लक्षण बताते हैं, जो कभी-कभी ही होते हैं जैसे कि दौरे पड़ना और उल्टी आना।
FII के मामलों में सबसे ज्यादा बताए गए सामान्य लक्षण नीचे दिए गए हैं :
- दौरे पड़ना
- जानलेवा स्थितियाँ बताना, उदाहरण के लिए, एक मां यह दवा कर सकती है कि उसके बच्चे ने अचानक से कुछ समय के लिए सांस लेना बंद कर दिया था
- ज़रूरत से ज़्यादा गीला होना
- खून की उल्टी या मल में खून निकलना
- खाने में दिक्कत
- पेट में गड़बड़ी जैसे कि कब्ज और डायरिया
- दमा
- उल्टी
- सीने में जलन
- खांसते समय खून आना
- त्वचा पर जलन, घाव और दूसरी तरह की चोट।
- मनगढ़ंत विकलांगता, उदाहरण के लिए, यह बहाना कि छोटे बच्चे को सुनने में कठिनाई होती है
- झूठा इल्जाम लगाना की दूसरे लोग बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करते हैं
- बच्चे के मूत्र से खून आना
- झूठा दावा करना कि बच्चे ने गलती से अधिक मात्रा में दवाई ले ली है
कारण
काल्पनिक या उत्प्रेरित बीमारी के लक्षणों को मुंचुसेन सिंड्रोम भी कहा जाता है, जो अब तक पूरी तरह से समझ में नहीं आया है, जिसमें ज्यादा शोध की जरूरत है।
हालांकि माता-पिता और परिजनों की जिंदगी में पहले के दर्दनाक अनुभव इसका कारण हो सकते हैं।
बाल उत्पीड़न
एक शोध से पता चलता है कि लगभग आधी माँएं, जो अपने बच्चों में काल्पनिक या उत्प्रेरित बीमारी के लिए जानी जाती हैं, वे खुद अपने बचपन में शारीरिक या यौन शोषण का शिकार हुई होती हैं।
ग़ौरतलब है कि आम तौर पर जिन लोगों का बचपन में यौन शोषण हुआ हो, वे अपने बच्चों के साथ बुरा बर्ताव नहीं करते हैं।
व्यक्तित्व विकार
जो माँएंऐसा करती हैं, उनको कुछ व्यक्तित्व विकार हो सकते हैं, विशेष रूप से बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसॉर्डर। ये एक तरह की मानसिक समस्या है, जहां एक व्यक्ति अपने और दूसरों के बारे में विचारों और विश्वासों का विकृत स्वरूप रखता है। ये विकृत विचार और विश्वास उसमें उन तरीकों से व्यवहार करने का कारण बन सकते हैं, जिनमें ज्यादातर लोग उसे परेशान या असामान्य मानने लगते हैं।
बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसॉर्डर को भावनात्मक रूप से परेशान, गलत सोच, गलत व्यवहार और दूसरों के साथ ना टिकने वाले संबंध आदि लक्षणों से पहचाना जा सकता है। इस व्यक्तित्व विकार के बारे में ज्यादा जानने के लिए पढ़ें।
कभी-कभी जिन लोगों में व्यक्तित्व विकार होता है, वे अपने व्यवहार या स्थितियों को इनाम के तौर पर महसूस करते हैं, जबकि अन्य इसे बहुत ही परेशान कर देने वाला पाते हैं। यह माना जाता है कि कुछ माँएं जो FII करती हैं, वे अपने बच्चे के मेडिकल देखभाल को एक इनाम की तरह देखती हैं।
इस में शामिल कुछ अन्य माँएं अपने बच्चे के प्रति बदले का अनुभव करती हैं, क्योंकि उनके मुकाबले उनके बच्चों का बचपन काफी खुशहाल होता है।
किरदार निभाना
एक थेओरी के मुताबिक FII एक तरह का काल्पनिक किरदार निभाना है।
इसमें एक मां देखभाल करने वाली मां का किरदार निभाती है, और उसी समय अपनी ये ज़िम्मेदारी किसी मेडिकल स्टाफ़ को भी सौंपती है।
समस्या से भागना
एक दूसरे मत के मुताबिक खुद की नकारात्मक भावनाओं और निराशा से बचने के तरीके के तौर पर मां FII से पीड़ित हो सकती है।
अपनी खुद की नकारात्मक भावनाओं को दूर करने के लिए कुछ माँएं अपने बच्चों के आसपास एक संकट पैदा कर देती हैं, फिर इन दिक़्क़तों पर गौर करके इनसे लड़ने की कोशिश करती हैं।
पहचान
एक अनुभवी डॉक्टर के लिए भी काल्पनिक और उत्प्रेरित बीमारी को पहचानना मुश्किल हो सकता है।
पेशेवर स्वास्थ्य सेवा कर्मी आमतौर पर यही मानते हैं कि मां-बाप और अभिभावक अपने बच्चे की देखभाल के लिए अच्छा सोचते हैं। जब तक शक करने के लिए कोई दूसरा मजबूत सबूत उनको ना मिले।
FII का संदेह होने पर
अगर स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को एफआइआई का संदेह होता है तो आम तौर पर इस तरह के मामलों को वरिष्ठ शिशु डॉक्टर को सौंप देते हैं।
वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ बच्चों के लक्षणों की सत्यता की जांच करने के लिए चिकित्सीय प्रमाणों को जांचेंगे। वे किसी अन्य विशेषज्ञ की राय और दोबारा जांच भी करा सकते हैं।
घटनाक्रम
अगर वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ को भी ये सारी रिपोर्ट देखने के बाद यही शक हुआ तो वे बच्चे की बीमारियों के इतिहास से संबंधित सारी जानकारियों को दोबारा पढ़ सकते हैं। इसी को घटनाक्रम कहा जाता है।
वे बच्चों की सुरक्षा करने वाली स्थानीय अधिकृत चाइल्ड प्रोटेक्शन टीम(सीपीटी) को जानकारी देकर बच्चे की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर कर सकते हैं। उन्हें बता सकते हैं कि सारे मामले की दूसरे स्तर पर भी जांच चल रही है।
कई अलग-अलग तरह के पेशेवर प्रशिक्षकों को सीपीटी के समूह में शामिल किया जाता है। स्थानीय संस्थाएं इनकी नियुक्ति करती हैं। इनका काम बच्चों को शोषण और उपेक्षा से सुरक्षा दिलाना है।
बच्चों के कल्याण से जुड़ी बाकी संस्थाओं जैसे कि स्कूल और सामाजिक कल्याण संस्थाओं से भी इन मामलों में संपर्क किया जा सकता है। घटनाक्रम के लिए ये भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि उनके पास बच्चों के बारे में जरूरी जानकारी और इतिहास हो सकता है, जैसे कि बच्चे का स्कूल में उपस्थित न होना।
सबूत इकट्ठे करने के लिए गुप्त वीडियो निगरानी का प्रयोग किया जा सकता है। इसे एफआईआई के दोषियों के खिलाफ संदेह को पुख्ता करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
खुफ़िया वीडियो निगरानी करवाने का कानूनी अधिकार सिर्फ पुलिस को है। इसका प्रयोग तभी किया जाता है जब बच्चे के लक्ष्यों को जानने के लिए कोई दूसरा रास्ता न हो, लेकिन इसका उपयोग बहुत कम मामलों में किया जाता है।
एक बार घटनाक्रम पूरा हो जाए तो पूरी जानकारी सीपीटी और पुलिस को दे दी जाती है। पुलिस और मेडिकल स्टाफ आपस में मिलकर मामले को सुलझाने के लिए कोई रास्ता ढूंढने की कोशिश करते हैं।
बाल संरक्षण योजना
अगर बच्चे को माता-पिता या परिजन से कोई शारीरिक नुकसान का खतरा हो तो सामाजिक सेवा संस्थाएं बच्चे को उनकी देखभाल से तुरंत हटा हटा देंगी। ऐसा हो सकता है कि बच्चे को किसी अन्य रिश्तेदार की देखभाल में रखा जाए या पालन-पोषण संबंधी देखभाल के लिए सामाजिक सेवा संस्थाओं में भेज दिया जाए।
FII के बहुत से मामलों में बच्चा पहले से ही अस्पताल में होता है। ऐसी स्थिति में बच्चे को अस्पताल के किसी सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया जाता है, जिससे कि उसका इलाज पूरा किया जा सके। आम तौर पर परिजनों को बच्चे से मिलने के लिए रोक दिया जाता है।
बच्चे की देखभाल आम तौर पर उन सभी मामलों में की जाती है, जिन मामलों में बच्चे को कोई शारीरिक चोट पंहुची है और उन आधे मामलों में से जहाँ मां ने बस काल्पनिक कहानी बनाई है, बग़ैर लक्षणों के।
अगर ऐसा लगता है कि बच्चे को शारीरिक और दिमागी चोट पहुंचने का खतरा है तो ऐसी स्थिति में बाल सुरक्षा की योजना बनाई जाती है।
बाल सुरक्षा योजना, बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, उनकी ज़रूरतों और उनकी शैक्षिक या सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखती है। उदाहरण के लिए यदि अतीत में बच्चे की काल्पनिक और उत्प्रेरित बीमारी का बहाना बनाकर उसे रोज़ाना स्कूल भेजने से रोका गया हो।
बच्चे के मां-बाप या अभिभावकों को बच्चे की सुरक्षा के लिए मनोचिकित्सा या पारिवार थेरेपी के लिए कहा जा सकता है। अगर वे बच्चे की सुरक्षा की इस योजना से इंकार करते हैं तो बच्चे को उनकी देखभाल से पूरी तरह से हटा लिया जाता है।
पुलिस जांच
अगर पर्याप्त सबूतों के आधार पर पुलिस आपराधिक मामला बनाना चाहती है तो वो मामले की जांच की शुरुआत कर सकती है।
इलाज
पहला लक्ष्य उस बच्चे का इलाज करना है, जो काल्पनिक या उत्प्रेरित बीमारी के प्रभाव में है, जिससे बच्चे का स्वास्थ्य सुधर सके।
जिन छोटे बच्चों को ये समझ नहीं आता कि वे शोषण के शिकार हुए है उनमें शोषण खत्म होने के बाद ऐसे बच्चों की प्रगति में काफी सुधार आता है।
बड़े बच्चे जिनका कई सालों तक शोषण हुआ हो, उनमें कई तरह की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। मसलन FII के लक्षणों से पीड़ित बच्चे सच में ये मानने लगते हैं कि वो बीमार हैं और उन्हें इस स्थिति से बचने की जरूरत है। उन्हें यह सीखने की जरूरत भी पड़ सकती है कि अपने माता-पिता और परिजनों के झूठ और सच में अंतर कैसे पहचानें।
FII से पीड़ित बच्चों को स्कूल जाने में और अपनी सामान्य जिंदगी में लौटने के लिए सहायता की जरूरत होती है।
अपने मां-बाप या अभिभावकों के लिये वफ़ादारी महसूस करना भी बच्चों के लिए बेहद आम है। अगर उनकी वजह से माता-पिता या परिजन को परिवार से निकाल दिया जाता है तो वो ग्लानी महसूस करते हैं।
माता-पिता या अभिभावक
FII के लिए जिम्मेदार माता-पिता या अभिभावक का उपचार में शामिल हैं:
- गहन मनोचिकित्सा
- पारिवारिक चिकित्सा
मनोचिकित्सा का काम उन मामलों को सामने लाना है, जिनकी वजह से माता-पिता अपने बच्चों में काल्पनिक बीमारी की कल्पना करते हैं।
पारिवारिक चिकित्सा का काम परिवार के अंदर ही चिंता को कम करना, देखभाल करने में सुधार लाना, माता-पिता या अभिभावक और बच्चे के बीच के रिश्तों को सुधारने की कोशिश करना है।
ज्यादा गंभीर मामलों में माता-पिता या अभिभावकों को मानसिक स्वास्थ्य कानून के तहत एक मनोरोग वार्ड में दाखिल कराया जा सकता है ताकि उनके और बच्चों के बीच के संबंधों पर निगरानी रखी जा सके।
कुछ मामलों में अच्छे परिणाम भी निकलते हैं, जहां माता-पिता और परिजन:
- बच्चों को होने वाले नुकसान को समझते हैं और स्वीकार करते हैं
- आपस में बातचीत करने से वअच्छा महसूस करते हैं और उस कुंठा को मन से निकालने का प्रयास करते हैं जो काल्पनिक बीमारी का कारण बनती है
- स्वास्थ्य देखभाल और अन्य अनुभवी व्यक्तियों के साथ मिलकर काम कर पाते हैं
बहुत से माता-पिता और परिजन अपराध बोध महसूस करते हैं, जिसके लिए उन्हें इलाज की जरूरत होती है।
हालांकि ऐसे लोगों का इलाज करना चुनौती पूर्ण हो सकता है, जो इस तरह के शोषण का शिकार हुए हों, क्योंकि वे यह समझ नहीं पाते कि वे अपने बच्चों के साथ क्या गलत कर रहे हैं। वे अपने बच्चों के साथ किए गए गलत व्यवहार के प्रति उदासीन महसूस कर सकते हैं।
कई लोगों को प्रमुख विशेषज्ञों के पास भेजा जाता है, क्योंकि उनकी समस्याएं इतनी बढ़ चुकी होती हैं कि स्थानीय वयस्क मनोरोग सेवाएं इसके लिए काफी नहीं होतीं।