परिचय
मुनचूसन्स सिंड्रोम एक मनोवैज्ञानिक और स्वभाव संबंधी अवस्था है जिसमें प्रभावित व्यक्ति खुद को बीमार दिखाता है या बीमारी के लक्षण विकसित करता है।
मुनचूसन्स सिंड्रोम को कभी-कभी तथ्यात्मक विकार भी कहा जाता है।
मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार लोग:
- जानबूझकर शारीरिक या मानसिक बीमारी का लक्षण प्रदर्शित करते हैं
- इनका मुख्य उद्देश्य बीमार दिखना, लोगों से अपनी तीमारदारी करवाना और उनकी तवज्जो हासिल करना होता है
- बीमारी का दिखावा करने का उनके लिए कोई व्यावहारिक फायदा नहीं होता है, जैसे बीमारी से संबंधित लाभ का दावा करना
मुनचूसन्स सिंड्रोम का नाम जर्मन रईस बैरन मुनचूसन के नाम पर पड़ा है, जो अपने बीते दिनों और कारनामों की निराधार व अविश्वसनीय कहानियां सुनाते थे।
व्यवहार के प्रकार
मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार लोगों के व्यवहार के निम्न प्रकार होते हैं:
- मनोवैज्ञानिक लक्षणों का दिखावा करना– मिसाल के तौर पर ऐसी आवाजें सुनने या चीजें देखने का दावा करना जो हकीक़त में होती ही नहीं
- शारीरिक लक्षणों की कल्पना – मिसाल के तौर पर सीने में या पेट में दर्द का दावा करना
- खुद का बीमार करने के लिए तत्परता से मौके ढूंढना – जैसे किसी घाव के ऊपर मिट्टी लगाकर उसे जानबूझकर संक्रमित करने की कोशिश करना
मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार कुछ लोग ढेरों बीमारियों का स्वांग रचते हुए वर्षों तक एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर काटते हैं। उनका झूठ उजागर होने पर तुरंत उस अस्पताल से निकलकर किसी अन्य स्थान पर चले जाते हैं।
मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार लोग काफी जोड़-तोड़ वाले होते हैं और चंद बेहद गंभीर मामलों में तकलीफदेह और कभी-कभी जानलेवा सर्जरी तक करवाने से पीछे नहीं हटते हैं, जबकि वह जानते हैं कि यह गैर जरूरी है।
मुनचूसन्स सिंड्रोम के लक्षणों के बारे में और पढ़ें।
क्यों होता है मुनचूसन्स सिंड्रोम ?
मुनचूसन्स सिंड्रोम एक जटिल और कम समझी गई अवस्था है और अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इसके शिकार लोग इस तरह का व्यवहार क्यों करते हैं।
कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि मुनचूसन्स सिंड्रोम एक तरह का व्यक्तित्व संबंधी विकार है। व्यक्तित्व संबंधी विकार(personality disorder) एक मानसिक स्वास्थ्य अवस्था है जिसमें प्रभावित व्यक्ति का खुद के और दूसरों के बारे में सोच और विचार का विकृत तरीका होता है। इसकी वजह से वह ऐसा व्यवहार करते हैं, जिसे ज्यादातर लोग विक्षुब्ध और असामान्य करार देते हैं।
एक अवधारणा के मुताबिक यह स्थिति माता-पिता की उपेक्षा और परित्याग का नतीजा होती है। इसकी वजह से उनमें बचपन के आघात का एहसास होता है और वे नकली बीमारी के लक्षण प्रदर्शित करने लगते हैं।
मुनचूसन्स सिंड्रोम के संभावित कारणों के बारे में और पढ़ें।
इलाज
मुनचूसन्स सिंड्रोम का इलाज चुनौती-पूर्ण हो सकता है क्योंकि इसके शिकार ज्यादातर लोग यह मानने को तैयार ही नहीं होते हैं कि वह नकली बीमारी का छल कर रहे हैं।
जो लोग यह मानते हैं कि उनका यह व्यवहार असामान्य है उनके लिए कॉगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी जैसी बात करने वाली थेरेपी कई बार काफी प्रभावी साबित होती है।
मुनचूसन्स सिंड्रोम के इलाज के बारे में और ज्यादा पढ़ें।
कौन होता है प्रभावित?
मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार लोगों को दो अलग-अलग समूहों में बांटा जा सकता है :
- 20 से 40 साल की महिलाएं, जिनकी बतौर नर्स या चिकित्सकीय तकनीशियन के रूप में काम करने की स्वास्थ्य सेवाओं की पृष्ठभूमि होती है
- 30 से 50 साल की उम्र के अविवाहित पुरुष
ऐसा क्यों है यह अभी तक साफ नहीं हो सका है।
यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि मुनचूसन्स सिंड्रोम कितना सामान्य है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सही पहचान अब भी नहीं हो सकी है क्योंकि इसके शिकार ज्यादातर लोग चिकित्साकर्मियों को धोखा देने में सफल रहते हैं। चूंकि एक ही व्यक्ति कई पहचान का इस्तेमाल करता है इसलिए मुनचूसन्स सिंड्रोम ओवर डायग्नोस होना भी संभव हो सकता है।
कनाडा के एक अस्पताल में किए गए विस्तृत अध्ययन में पता चला कि 1300 मरीजों में से 10 ऐसे थे जो बीमारी के लक्षणों का छल कर रहे थे।
लक्षण
किसी को मुनचूसन्स सिंड्रोम होने की चेतावनी देने वाले ढेरों संकेत हैं।
इस अवस्था से ग्रस्त व्यक्ति :
- अलग-अलग जगहों के अस्पतालों में बार-बार जाते हैं
- जटिल और गंभीर बीमारी का इतिहास होने का दावा करते हैं और इसके लिए कुछ दस्तावेज भी पेश करते हैं (यह लोग लंबे समय तक देश से बाहर रहने का भी दावा करते हैं)
- ऐसे लक्षण होते हैं जिनके टेस्ट लक्षण के हिसाब से अलग आते हैं
- ऐसे लक्षण होते हैं जो बिना किसी वाजिब वजह के गंभीर हो जाते हैं
- बहुत अच्छी चिकित्सकीय जानकारी होती है
- अस्पताल में भर्ती होने पर उनसे मिलने बहुत कम लोग या कोई नहीं आता (मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार काफी लोग एकाकी जीवन अपनाते हैं और परिवार या मित्रों से ज्यादा संपर्क नहीं रखते हैं)
- तकलीफदेह या खतरनाक टेस्ट और प्रक्रियाओं से गुजरने को तैयार रहते हैं
- अनुचित और अज्ञात लक्षण होने का दावा करते हैं, या लक्षणों का ऐसा पैटर्न बताते हैं, जो किसी खास बीमारी का किताबी विवरण होता है
- अपने बीते जीवन के बारे में अविश्वसनीय और बढ़ा-चढ़ाकर कहानी सुनाते हैं, जैसे खुद को युद्ध का अलंकृत नायक बताते हैं या माता-पिता के रईस और ताक़तवर होने का दावा करते हैं
व्यवहार का तरीका
मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार लोग बीमारी का छल या दिखावा मुख्यत: चार तरीके से करते हैं। इनके बारे में नीचे बताया जा रहा है।
लक्षणों के बारे में झूठ बोलना- यह ऐसे लक्षण चुनते हैं जिन्हें नकारना संभव नहीं होता, जैस तेज सिरदर्द या दौरा आने का छल करना या गश खाकर गिरना।
टेस्ट के नतीजों के साथ छेड़छाड़ करना- मिसाल के तौर पर गर्म चीज में थर्मामीटर डालकर बुखार का दावा करना या पेशाब के सामान्य नमूने में रक्त डाल देना।
खुद को नुक़सान पहुँचना - यह खुद को जला या चोटिल कर सकते हैं, किसी दवा का ओवरडोज या ड्रग से जहर खा सकते हैं या बैक्टीरिया से संक्रमित खाना खाना।
पहले से मौजूद अवस्था को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना - मिसाल के तौर पर किसी जख्म पर मिट्टी या गंदगी लगाकर उसे संक्रमित करते हैं या किसी भर चुके घाव को कुरेद कर खोल देते हैं।
इंटरनेट पर मुनचूसन्स सिंड्रोम
इंटरनेट पर एक बिलकुल नई अवस्था को मुनचूसन्स कहा जा रहा है। इसमें कोई व्यक्ति सिस्टिक फाइब्रोसिस या ल्यूकेमिया जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या के शिकार लोगों के इंटरनेट पर बने सहायता समूह में शामिल होता है और उसके बाद खुद उन बीमारियों से ग्रस्त होने का दावा करता है।
उनकी यह हरकत जहां इंटरनेट तक ही सीमित रह सकती है, वहीं उनका प्रभाव इन सहायता समूहों और ऑनलाइन समुदायों पर काफी विध्वंसकारी होता है। इस झूठ का पता चलने पर वास्तव में गंभीर बीमारियों के शिकार लोगों ने धोखा और गुस्सा प्रकट किया।
इनटरनेट पर मुनचूसन्स के एक विशेषज्ञ ने चेतावनी संकेतों की एक सूची तैयार की है, जिससे पता चलता है कि कोई इस अवस्था का शिकार हो सकता है :
उनके पोस्ट और संदेशों में किसी स्वास्थ्य वेबसाइट से ली गई काफी लंबी जानकारियाँ होती हैं।
वे ऐसे लक्षण अनुभव करने की बात करते हैं, जो समूह के ज्यादातर लोगों से गंभीर होते हैं।
वह बीमारी से तकरीबन जानलेवा स्थिति तक पहुंचने और फिर चमत्कारी रूप से ठीक होने का दावा करते हैं।
वह बहुत शानदार दावे करते हैं, जिन्हें बाद में वह खुद या दूसरे उन्हें अस्वीकार कर देते हैं। मिसाल के तौर पर वह किसी अस्पताल में इलाज कराने का दावा करते हैं जो हकीक़त में मौजूद ही नहीं होता है।
वह अपने जीवन में लगातार किसी प्रियजन की मृत्यु या हिंसक अपराध का शिकार होने जैसी नाटकीय घटनाओं का उल्लेख करते हैं, खासतौर से तब जब समूह का कोई दूसरा शख्स लोगों के आकर्षण का केंद्र बन जाता है।
किसी गंभीर समस्या के बारे में वह बेपरवाह बनकर बात करने का अभिनय करते हैं, शायद वह दूसरों की सहानुभूति और तवज्जो पाना चाहते हैं।
माता-पिता या पार्टनर सरीखे दूसरे लोग उनकी तरफ से पोस्ट करने का दावा करते हैं, मगर उनकी लेखन शैली एक जैसे होती है।
कारण
मुनचूसन्स सिंड्रोम के संभावित कारणों बारे में काफी कम प्रमाण हैं मौजूद हैं क्योंकि इसके शिकार काफी लोग मानसिक रोगों के इलाज या मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलिंग में सहयोग नहीं करते हैं।
अवधारणाएं
मुनचूसन्स सिंड्रोम के मुख्य कारणों के बारे में दो अहम अवधारणाएं हैं। यह अवस्था निम्न कारणों का नतीजा हो सकती है :
भावनात्मक सदमा(गहरा दुख पहुंचाने वाले अनुभव) जो प्रभावित व्यक्ति के बचपन में हुआ हो
व्यक्तित्व का विकार : मानसिक स्वास्थ्य की ऐसी अवस्था जिसकी वजह से प्रभावित शख्स असामान्य सोच और व्यवहार करने लगे
यह दोनों ही अवधारणाएं एक दूसरे से कुछ हद तक आंतरिक तौर पर संबंधित हो सकती हैं। बचपन में लगे सदमे की वजह से कोई व्यक्ति बड़े होने के बाद व्यक्तित्व विकार से ग्रस्त हो सकता है।
दोनों अवधारणाओं के बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है।
बचपन में लगा सदमा
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मुनचूसन्स सिंड्रोम के अधिकतर मामलों के लिए माता-पिता की अनदेखी या परित्याग जिम्मेदार होता है, जिसकी वजह से प्रभावित शख्स के अंदर बचपन का सदमा बैठ जाता है।
इस सदमा की वजह से उस व्यक्ति का अपने माता-पिता के साथ कई मुद्दे अनसुलझे रह जाते हैं जिसकी वजह से वह बीमारी का छल करने लगते हैं। ढेरों कारणों से वह ऐसा कर सकते हैं, मिसाल के तौर पर :
- क्योंकि वह खुद को कम आँकते हैं, इसलिए बीमार बनकर वह खुद को सजा देने को मजबूर हो जाते हैं
- खुद को आकर्षण का केंद्र बनाने और अहम महसूस करने के लिए
- दूसरे लोगों पर अपनी देखभाल और परवाह करने की जिम्मेदारी पास करने के लिए
इस बात के भी कुछ प्रमाण हैं कि सघन चिकित्सा प्रक्रियाओं से गुजरने वाले या बचपन अथवा किशोरावस्था में खास चिकित्सकीय देखरेख में रहने वाले बाद के जीवन में मुनचूसेन्स सिंड्रोम के शिकार हो जाते हैं।
ऐसा शायद इसलिए होता है क्योंकि वह अपने बचपन की यादों को हिफाज़त के एहसास से जोड़ते हैं। जैसे-जैसे वह बड़े होते हैं बीमारी का दिखावा कर उसी एहसास को फिर से पाना चाहते हैं।
व्यक्तित्व विकार(Personality disorders)
मुनचूसेन्स सिंड्रोम के शिकार बहुत से लोगों में व्यक्तित्व विकार होने के कुछ प्रमाण मौजूद हैं।
व्यक्तित्व विकार एक तरह की मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अवस्था का एक प्रकार है जिसमें प्रभावित व्यक्ति से खुद के और दूसरों के बारे में विचार और विश्वास विकृत तरीके के होते हैं। यह उन्हें काफी सारे लोगों के साथ खास तरह से व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है, जिसे बाकी लोग अशांत और असामान्य करार देते हैं।
एक अवधारणा के मुताबिक मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार ऐसे लोग भी हो सकते हैं जिनमें असामाजिक व्यक्तित्व विकार होता है और इससे उन्हें डॉक्टरों को अपनी बातों में उलझाने और छल करने पर खुशी महसूस होती है। वह डॉक्टरों को आधिकारिक व्यक्ति के तौर पर देखते हैं और उनके साथ छल कर वह खुद में ताकत और नियंत्रण की भावना पाते हैं।
एक अन्य अवधारणा के मुताबिक मुनचूसेन्स सिंड्रोम के शिकार कुछ लोगों में क्लस्टर बी व्यक्तित्व विकारcluster B personality disorders) नाम की गंभीर समस्या होती है। क्लस्टर बी व्यक्तित्व विकार से ग्रस्त शख्स अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के साथ ही दूसरों के सकारात्मक व नकारात्मक विचारों के बीच झूलते रहते हैं। (क्लस्टर बी व्यक्तित्व विकार का सबसे सामान्य प्रकार बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी विकार होता है)।
यह भी हो सकता है कि प्रभावित व्यक्ति में अपनी पहचान को लेकर अस्थिरता का भाव हो और उसे दूसरों के साथ सार्थक संबंध बनाने में परेशानी हो रही हो। अत: बीमार होने का अभिनय करने से वह एक ऐसी पहचान हासिल कर पाते हैं, जिसके साथ उन्हें दूसरों से बिना शर्त सहयोग और स्वीकार्यता हासिल होती है। अस्पताल में दाखिल होने से उस व्यक्ति को सामाजिक नेटवर्क में निर्धारित जगह भी मिल जाती है।
पहचान
चिकित्सा क्षेत्र के पेशेवरों के लिए मुनचूसन्स सिंड्रोम की पहचान करना मुश्किल हो सकता है।
इस अवस्था के शिकार लोग अमूमन बिलकुल झूठे होने के साथ ही डॉक्टर की अपने मरीज के लिए चिंता और असामान्य रोगों के प्रति जिज्ञासा का दुरुपयोग करने व उसमें हेरफेर करने में माहिर होते हैं।
पड़ताल
स्वास्थ्य कर्मी किसी व्यक्ति में मुनचूसन्स सिंड्रोम होने की आशंका जाहिर करने के बाद उनके हेल्थ रिकॉर्ड्स का विस्तृत अध्ययन कर उस शख्स के मेडिकल इतिहास के बारे में दावा और हकीक़त के बीच असमानता की खोज करते हैं। वह उनके परिवार के सदस्यों और मित्रों से बात कर यह जानने की कोशिश कर सकते हैं कि उनके बीते जीवन के बारे में दावा सही है या नहीं।
स्वास्थ्यकर्मी क्लीनिकल टेस्ट के नतीजों से छेड़छाड़ करने और ख़ुद में बीमारी विकसित करने के प्रमाण के लिए कई सारे क्लीनिकल टेस्ट कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर उस व्यक्ति के खून की जांच उन दवाओं की निशानी तलाशने के लिए कर सकते हैं जो वह शख्स ले ही नहीं रहा हो, मगर इससे उनके लक्षणों के बारे में सही ब्योरा मिल सकता है।
डॉक्टर उनके व्यवहार के लिए जिम्मेदार दूसरे संभावित प्रेरणास्रोत की आशंका को जरूर दूर करना चाहेंगे, जैसे वित्तीय लाभ के लिए बीमारी का बहाना करना, या क्योंकि वह दर्दनिवारक दवाओं तक पहुंच बनाना चाहते हैं।
मुनचूसन्स सिंड्रोम की पहचान अमूमन विश्वास के साथ की जा सकती है अगर:
- लक्षणों का दिखावा करने या प्रदर्शित करने के स्पष्ट प्रमाण मौजूद हों
- व्यक्ति का प्रमुख उद्देश्य बीमार दिखने का हो
- उनके व्यवहार के लिए कोई खास कारण या व्याख्या न समझ में आए
इलाज
मुनचूसन्स सिंड्रोम का इलाज मुश्किल हो सकता है क्योंकि ज्यादातर लोग यह मानने को ही तैयार नहीं होते कि उन्हें यह समस्या है और सुझायी गई इलाज की योजना के साथ सहयोग नहीं करते हैं।
कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि स्वास्थ्य सेवाकर्मियों को प्रभावित व्यक्ति के प्रति एक नर्म, अविवादित नजरिया अपनाना चाहिए। उसे जटिल स्वास्थ्य जरूरतों को देखते हुए मनोचिकित्सक के पास रेफर करने पर फायदा हो सकता है।
अन्य विशेषज्ञों का तर्क है कि मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार व्यक्ति से उनके द्वारा बोले गए झूठ के बारे में सीधे सवाल-जवाब किया जा सकता है और वह कहीं तनाव व चिंताग्रस्त तो नहीं हैं।
मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार लोगों की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इस अवस्था के शिकार लोग वास्तविक तौर से मानसिक बीमार होते हैं, मगर अस्पताल में सिर्फ शारीरिक बीमारी की वजह से भर्ती होते हैं।
अगर कोई शख्स अपने व्यवहार को स्वीकार करते हैं तो उन्हें मनोचिकित्सा सेवाओं के विशेषज्ञ के पास भावी इलाज के लिए रेफर किया जा सकता है (नीचे देखें)।
अगर को शख्स झूठ बोलने की बात को कुबूल नहीं करता है तो ज्यादातर विशषज्ञों का कहना है कि उनकी देखरेख करने वाले डॉक्टर इनचार्ज को उनके साथ चिकित्सकीय संपर्क बेहद कम कर देना चाहिए। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि डॉक्टर-मरीज का संबंध भरोसे पर आधारित होता है और इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि मरीज उन पर भरोसा न करे और डॉक्टर उनका इलाज जारी न रख पाएं।
मनोचिकित्सक से इलाज
अगर कोई समस्या होने की बात को स्वीकार करता है और इलाज में सहयोग करता है तो उनके मुनचूसन्स सिंड्रोम के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद की जा सकती है।
इस अवस्था का कोई खास इलाज नहीं है, मगर साइकोअनालिसिस और कॉगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) के संयोग से लोगों को अपने लक्षणों को नियंत्रित करन में कुछ सफलता मिली है।
साइकोएनालिसिस(Psychoanalysis)
साइकोएनालिसिस सिग्मंड फ्रूड की अवधारणा पर आधारित मनोचिकित्सा का एक प्रकार है। फ्रूड का मानना था कि बचपन के शुरुआती दौर में अवचेतन मन में होने वाले विश्वास या प्रेरणा कई मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं का कारण हो सकते हैं। साइकोएनालिसिस के जरिये अवचेतन मन में बैठ जाने वाले विश्वास और प्रेरणा की गुत्थी सुलझाने में मदद मिलती है।
साइकोथेरेपी के बारे में और पढ़ें।
कॉगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी
कॉगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) किसी व्यक्ति के असहयोगात्मक और अवास्तविक विचार एवं व्यवहार के पैटर्न की पहचान करने में मदद करती है।
खासतौर से प्रशिक्षित थेरेपिस्ट किसी शख्स को अपने अवास्तविक भरोसे को अधिक वास्तविक और संतुलित भरोसे से बदलने का तरीका सिखाता है।
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पारिवारिक थेरेपी
मुनचूसन्स सिंड्रोम के शिकार लोग जो अब भी अपने परिवार के संपर्क में हों, उन्हें फैमिली थेरेपी से काफी फायदा मिलता है। मुनचूसन्स सिंड्रोम ग्रस्त शख्स और उनके परिवार के क़रीबी लोग यह चर्चा कर सकते हैं कि उनकी अवस्था से परिवार कितना प्रभावित हुआ है और क्या सकारात्मक बदलाव किए जा सकते हैं।
इससे परिवार के सदस्यों को यह समझाया जा सकता है कि प्रभावित शख्स के असामान्य बर्ताव में बदलाव करने के बजाया उसे टालने का प्रयास करें। मिसाल के तौर पर व्यक्ति जब बीमार होने का दिखावा करने लगे तो उसकी पहचान करें और उन्हें परवाह दिखाने या सहयोग करने का प्रस्ताव देने से बचें।