पेम्फिगस वल्गारिस (Pemphigus Vulgaris)

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परिचय

पेम्फिगस वल्गारिस (PV) एक दुर्लभ तथा गंभीर स्थिति है, जिसमें त्वचा पर तथा मुख, नाक, गले, मलद्वार तथा जननांगों के अंदर पीड़ादायक फफोले उत्पन्न हो जाते हैं।

ये फफोले नाजुक होते हैं तथा आसानी से फट सकते हैं, और त्वचा के कच्चे तथा ना भरे हुए पीड़ादाय फफोले बन सकते हैं।

फफोले धीरे-धीरे लुप्त हो सकते हैं तथा बाद में फिर से उत्पन्न हो सकते हैं तथा ये कितनी गंभीरता के साथ पुनः उत्पन्न होंगे, इसका पूर्वानुमान करना असंभव है।

पेम्फिगस वल्गारिस के लक्षणों के बारे में और पढ़ें।

पीवी (PV) एक ऑटोइम्यून (autoimmune) स्थिति है। इसका अर्थ यह है कि प्रतिरक्षा तंत्र (संक्रमण के प्रति शरीर की रक्षात्मक क्रिया) ठीक से कार्य नहीं करता तथा स्वस्थ ऊतकों पर हमला शुरू कर देता है।

पीवी(PV) के मामलों में प्रतिरक्षा तंत्र त्वचा की गहरी परतों में पायी जाने वाली कोशिकाओं पर तथा उसके साथ ही श्लेष्म झिल्लियों(मुख, नाक, गले, जननांग तथा मलद्वार की सुरक्षात्मक परत) में पायी जाने वाली कोशिकाओं पर हमला करने लगता है। इसके कारण प्रभावित ऊतकों में फफोले उत्पन्न हो जाते हैं।

यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों प्रतिरक्षा तंत्र इस प्रकार से विपरीत व्यवहार करने लगता है। पीवी (PV) को उत्पन्न करने मे आनुवंशिक तथा वातावरण संबंधी कारण संयुक्त रूप मे हो सकते हैं। यह ज्ञात है कि पीवी (PV) संक्रामक रोग नहीं है तथा एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं फैल सकता|

पेम्फिगस वल्गारिस(pemphigus vulgaris) के संभावित कारणों के बारे में और पढ़ें।

पेम्फिगस वल्गारिस(pemphigus vulgaris) की चिकित्सा

वर्तमान मे पीवी (PV) का कोई इलाज नही है, हालांकि स्टेरॉइड(steroid) औषधियों (कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स) की उच्च मात्रा से इसके लक्षणों मे अच्छा लाभ मिलता है।

लंबे समय तक स्टेरॉइड (steroid) की अधिक मात्रा का प्रयोग करने से गंभीर दुष्परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए जब लक्षण ठीक होने लगते हैं तो इसकी कम मात्रा को अन्य औषधियों के साथ संयुक्त करके प्रयोग किया जाता है। इसे स्टेरॉइड स्पेरींग थेरेपी (steroid-sparing therapy) कहते हैं तथा इससे स्टेरॉइड (steroid) के लंबे समय तक प्रयोग के कारण होने वाले कुछ दुष्परिणामों से बचा जा सकता है।

हाल ही में हुए शोध से यह पता चलता है कि रिटुक्सिमैब(rituximab) नामक एक प्रकार की औषधि उन

गंभीर मामलों में प्रभावी चिकित्सा होती है, जिसमें पारंपरिक चिकित्सा से लाभ नहीं मिलता।

पेम्फिगस वल्गारिस (pemphigus vulgaris) की चिकित्सा के विषय में और जानें।

जटिलताएं

पीवी (PV) की एक आम जटिलता इसके फफोलों का संक्रमित हो जाना है। कुछ मामलों में संक्रमण बहुत तेजी से रक्त में फैल सकता है (सेप्सिस), जिससे पूरा शरीर प्रभावित हो जाता है तथा यह प्राणघातक हो सकता है।

अन्य जटिलताओं में स्टेरॉइड (steroid) तथा इम्यूनोसप्रेसेंट्स (immunosuppressant) के प्रयोग से संबंधित दुष्परिणाम शामिल हैं।

पेम्फिगस वल्गारिस (pemphigus vulgaris) की जटिलताओं के बारे में और पढ़ें ।

इससे कौन प्रभावित होते हैं?

पीवी (PV) एक असामान्य स्थिति है। इसके ज्यादातर मामले 50 से 60 वर्ष की आयु के वयस्कों में उत्पन्न होते हैं, लेकिन पीवी (PV) सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित कर सकता है, जिसमें बच्चे भी शामिल हैं। पुरुष तथा महिलाएं समान रूप से प्रभावित होते हैं।

पीवी (PV) यहूदी(Jewish), भारतीय तथा भूमध्यसागरीय (Mediterranean) वंश के लोगों में थोड़ा अधिक पाया जाता है।

दृष्टिकोण

स्टेरॉइड्स का समावेश होने के बाद से पीवी PV) से ग्रसित लोगों के प्रति दृष्टिकोण में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, हालांकि इस स्थिति से संबंधित जटिलताएं जीवन के लिए घातक हो सकती हैं।

पीवी(PV) से ग्रसित अनेक लोग इसके पुनः होने का अनुभव तब करते हैं, जब लक्षण विशेष रूप से बढ़ जाते हैं तथा उसके बाद कुछ समय तक कोई भी लक्षण अनुभव नहीं करते अथवा बहुत कम लक्षणों का अनुभव करते हैं(इसे remission कहते हैं)। कुछ लोगों में इसके लक्षण स्थाई रूप से दूर हो सकते हैं।

लक्षण

पेम्फिगस वल्गारिस (Pemphigus vulgaris- PV) के कारण त्वचा तथा मुख, नाक, गले एवं जननांगों(योनि, योनिद्वार, लिंग तथा मलद्वार) की में व्यापक रूप से फफोले उत्पन्न हो जाते हैं।

ये फफोले(blisters) फूट सकते हैं तथा पीड़ादायक घाव मे परिवर्तित हो सकते हैं, जिन्हे भरने में कुछ समय लग सकता है।

पेम्फिगस वल्गारिस(पीवी- PV) से ग्रसित ज्यादातर लोगों में फफोले सबसे पहले मुख में दिखाई देते हैं और फिर बाद में त्वचा को प्रभावित कर सकते हैं । मुख के फफोले घाव मे बदल जाते हैं, जिसके कारण खाने, पीने तथा दांतों को ब्रश करने में अत्यंत पीड़ा होती है। यदि ये स्वर यंत्र तक फैल जाते हैं तो आवाज भारी हो सकती है।

यदि त्वचा प्रभावित होती है, तो पेम्फिगस वल्गारिस के कारण पूरी त्वचा पर कोमल फफोले प्रकट हो जाते हैं। ये फफोले बहुत आसानी से फूट जाते हैं तथा लाल घाव में बदल जाते हैं। इन घावों पर परत जम जाती है तथा पपड़ी बन जाती है, जिसके परिणामस्वरूप त्वचा का रंग बदल जाता है। ये घाव आपस मे जुड़कर नई त्वचा जैसा प्रतीत हो सकते हैं।

ये लक्षण अप्रत्याशित समय पर बहुत अधिक बढ़ सकते हैं तथा अन्य समय पर घट सकते हैं।

कारण

पेम्फिगस वल्गारिस (PV) एक स्व-प्रतिरक्षित (ऑटोइम्यून) स्थिति है। इस स्थिति के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपनी ही कोशिकाओं तथा अंगों पर गलती से हमला करने लगती है।

सामान्य रूप में प्रतिरक्षा प्रणाली ऐसी प्रतिक्रिया किसी आक्रामक जीवाणु या पदार्थ के विरुद्ध करती है, जिसकी वह पहचान नहीं करता, जैसे कोई वायरस या पराग कण।

पेम्फिगस वल्गारिस(PV) के मामले में प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडीज का उत्पादन करती है, जो त्वचा की कोशिकाओं तथा म्यूकस झिल्लियों(मुख ,नाक, गले तथा जननांगों की सतह) को क्षति पहुंचाती है। एंटीबॉडीज कोशिकाओं को जोड़ कर रखने वाली डेस्मोग्लेइंस(desmogleins) नामक प्रोटीन पर हमला करती है। इसके कारण कोशिकाएं अलग-अलग हो जाती हैं। इसके बाद तरल से भरे फफोले अथवा घाव इन्हीं स्थानों में उत्पन्न हो जाते हैं |

यह ज्ञात नहीं है कि कुछ लोगों में ऐसी प्रतिक्रिया क्यों उत्पन्न होती है।

क्या पेम्फिगस वल्गारिस (PV) वंशानुगत है?

पेम्फिगस वल्गारिस(PV) परिवारों में नहीं फैलता तथा एक परिवार में एक से अधिक व्यक्ति में इसके होने की संभावना बहुत कम होती है।

हालांकि, हाल ही में प्रमाणों से यह संकेत मिलता है कि एक व्यक्ति अपने माता-पिता से जो जीन्स वंशानुगत रूप मे प्राप्त करता है, वे सीधे तौर पर पेम्फिगस वल्गारिस (PV) का कारण तो नहीं होते, लेकिन उन्हें इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं।

पेम्फिगस वल्गारिस (PV) से ग्रसित लोगों में DR4 तथा DRw4 नामक दो आनुवंशिक परिवर्तन (जिसमें सभी जीवित कोशिकाओं में पाए जाने वाले निर्देश किसी प्रकार से अव्यवस्थित हो जाते हैं) समान पाये गए हैं।

अनेक विशेषज्ञ मानते हैं कि पेम्फिगस वल्गारिस को सक्रिय (trigger) करने के लिए किसी बाहरी कारण या अनेक कारणों के संयोग की भी आवश्यकता होती है। यह कोई जीवाणु या वाइरल संक्रमण या वातावरण संबंधित कारण हो सकता है, जैसे कोई प्रदूषक।

जटिलताएं

पेम्फिगस वल्गारिस (पीवी - PV) की एक आम जटिलता अतिरिक्त संक्रमण (Secondary infections) होना है।

पीवी (PV) के कारण होने वाले फफोले जीवाणु संक्रमण के प्रति संवेदनशील होते हैं तथा यह स्थिति अधिक खराब इसलिए हो जाती है, क्योंकि पीवी (PV) की चिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली अधिकतर औषधियां प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर कर देती हैं।

संक्रमित फफोले के लक्षणों में शामिल हैं:

  • फफोले या उसके आसपास की त्वचा का अधिक पीड़ादायक तथा गर्म होना
  • फफोलों के अंदर पीले या हरे रंग का मवाद भर जाना
  • फफोलों से निकलती हुई लाल रेखाएं बन जाना

संक्रमित फफोले की उपेक्षा ना करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि ये फूट कर खुल (ruptures) जाता है तो इसके कारण सेकन्डेरी इम्पिटाइगो(secondary impetigo -फैलने वाला त्वचा का जीवाणु संक्रमण) उत्पन्न होने की संभावना हो जाती है।

इसके कारण अन्य जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे

सैलुलाइटिस(Cellulitis- त्वचा की गहरी परतों मे जीवाणु संक्रमण) अथवा सेप्सिस(प्राणघातक रक्त संक्रमण)|

यदि आपको लगता है कि आपको संक्रमित फफोला है तो आपको अपने चिकित्सक या डर्माटोलॉजिस्ट(dermatologist) से संपर्क करना चाहिए |

संक्रमित फफोले की चिकित्सा एंटीबायोटिक द्वारा की जा सकती है।

लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉइड (corticosteroid) प्रयोग

यदि आपको स्टेरॉड दवा(कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स) लंबे समय (3 महीने से अधिक समय) के लिए लेनी पड़ती हैं, तो इसके दुष्परिणामों में शामिल हैं:

  • वजन का और अधिक बढ़ना
  • त्वचा का पतला होना, जिसमें आसानी से खरोंच आ सकती है
  • मांसपेशीय दुर्बलता
  • वसा संचय का संयोग होना, जो चेहरे पर विकसित हो सकता है(moon face), पूरे शरीर मे स्ट्रेच मार्क्स (stretch marks) तथा मुहांसे होना -इसे कुशिंग सिन्ड्रोम (Cushing’s syndrome) कहते हैं
  • हड्डियों का कमजोर होना (ऑस्टिओपोरोसिस - osteoporosis)
  • मधुमेह की शुरुआत होना अथवा मौजूदा मधुमेह का बिगड़ जाना
  • उच्च रक्तचाप
  • ग्लॉकोमा(glaucoma) - आंखों में होने वाली स्थिति, जिसमें आंख के अंदर तरल इकट्ठा हो जाता है
  • कैटरैक्ट्स(cataracts) - आंखों में उत्पन्न होने वाली स्थिति, जिसमें आंखों के आगे धुंधलापन (cloudy patches) उत्पन्न हो जाता है
  • घावों का देरी से भरना
  • संक्रमण का जोखिम बढ़ना

यदि आप अपनी औषधि की मात्रा को कम करने में समर्थ हो जाते हैं तो इन दुष्परिणामों में भी सुधार होना चाहिए। लेकिन, ऑस्टिओपोरोसिस (osteoporosis) की समस्या लगातार बनी रह सकती है, विशेष रूप से यदि आप 65 वर्ष की आयु से

अधिक हो। यह आपको हड्डी टूटने के प्रति अधिक संवेदनशील बना देता है|

आपके डॉक्टर आपको औषधियां, कैल्शियम तथा विटामिन डी सप्लिमेंट्स (vitamin D supplements) निर्देशित कर सकते हैं, जो आपकी हड्डियों को ताकत देने में तथा प्रेडनिसोलोन (prednisolone) के प्रभाव की क्षतिपूर्ति करने मे सहायक हो सकती हैं।

ऑस्टिओपोरोसिस (Osteoporosis) की चिकित्सा के बारे में और पढ़ें।

आपको डुअल एनर्जी एक्स-रे एबसोर्पटिओमेट्री (dual energy X-ray absorptiometry -DEXA) स्कैन नामक एक प्रकार के एक्स-रे (X-ray) के लिए भी रेफर किया जा सकता है। इसका प्रयोग यह देखने के लिए किया जाता है कि आप की हड्डियां कितनी ताकतवर हैं। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए ऑस्टिओपोरोसिस (osteoporosis) का निदान देखे।

लंबे समय तक मुख द्वारा कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (corticosteroids) की उच्च मात्रा का सेवन करने वाले लोगों में पेट के अल्सर(घाव) की समस्या भी हो सकती है। पेट के अल्सर (stomach ulcers) से बचने के लिए आपको प्रोटॉन पम्प इन्हिबिटर -पीपीआई(proton pump inhibitor -PPI) नामक औषधि निर्देशित की जा सकती है। यह आपके पेट में अम्ल की मात्रा को कम कर देती है, जिससे आपमें पेट के अल्सर उत्पन्न होने की संभावना कम हो जाती है।

पेट के अल्सर की चिकित्सा के बारे में और पढ़ें।

यदि आपको लंबे समय तक मुख द्वारा कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स(corticosteroids) लेने की आवश्यकता होती है तो आपको मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा ग्लॉकोमा(glaucoma) के लिए संभवतः नियमित जांच तथा परीक्षणों की आवश्यकता होगी।

इम्यूनोसप्रेसेंट्स(Immunosuppressants) तथा कैंसर

यह प्रमाणित है कि लंबे समय तक इम्यूनोसप्रेसेंट्स(immunosuppressant) लेने पर आप में कैंसर के विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है, विशेष रूप से त्वचा का कैंसर।

एक अध्ययन में उन लोगों पर नजर रखी गई जो किडनी प्रत्यारोपित करवाने के पश्चात शरीर द्वारा उसको अस्वीकार करने से बचाने के लिए इम्यूनोसप्रेसेंट्स (immunosuppressants) ले रहे थे।

इस अध्ययन से यह पता चला कि इनमें से आधे से अधिक व्यक्तियों में, विशेष रूप से चिकित्सा शुरू करने के 15 वर्षों के बाद कैंसर विकसित हो गया था।

यह अभी स्पष्ट नहीं है कि पीवी (PV) के मामलों में भी इसी प्रकार का जोखिम है या नहीं तथा यह उस प्रकार का मामला भी हो सकता है जिसमें आपको 15 वर्षों या उससे अधिक समय के लिए इम्यूनोसप्रेसेंट्स(immunosuppressant) लेने की आवश्यकता नहीं होती।

लेकिन एहतियात के तौर पर यह निर्देशित किया जाता है कि :

  • यदि आप धूम्रपान करते हों तो उसे छोड़ दें
  • अपनी त्वचा को अत्यधिक सूर्य के प्रकाश के संपर्क में लाने से बचें
  • सनबेड्स (sunbeds) या सन लैम्पस (sun lamps) का प्रयोग कदापि ना करें

परीक्षण

क्योंकि पेम्फिगस वल्गारिस अत्यंत दुर्लभ होता है, इसलिए अनेक चिकित्सकों के सामने इसके मामले नहीं आए होते। यदि आपके चिकित्सक को पीवी(PV) का संदेह होता है तो आपको डर्माटोलॉजिस्ट(त्वचा विशेषज्ञ) के पास रेफर करने की आवश्यकता होगी।

डर्माटोलॉजिस्ट निदान को सुनिश्चित करेंगे तथा उचित चिकित्सा निर्देशित करेंगे |

यदि किसी के मुख में घाव हुए हों, जो भर ना रहे हों तो ऐसे मे सदैव पीवी (PV) होने की आशंका की जानी चाहिए| पीवी (PV) के अनेक मामलों मे मुख प्रभावित होता है तथा घाव अन्य स्थानों पर भी देखे जा सकते हैं, जैसे योनि में अथवा त्वचा में |

सुनिश्चित करना

त्वचा की बायोप्सी(biopsy) द्वारा पीवी (PV) का निदान सुनिश्चित किया जा सकता है, जिसमें एक बिना फूटे हुए फफोले के नमूने को प्रयोगशाला मे भेजा जाता है। माइक्रोस्कोप द्वारा उस नमूने की जांच करके देखा जाता है कि त्वचा कोशिकाएं टूट रही हैं या नही, जो पीवी (PV) की ओर संकेत करती हैं।

निदान को और अधिक सुनिश्चित करने के लिए इम्यूनोफ्लोरेसेंस(immunofluorescence) नामक तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है।

सीधे इम्यूनोफ्लोरेसेंस(immunofluorescence) में बायोप्सी की जाने वाली त्वचा की कोशिकाओं में पीवी(PV) एंटीबॉडीज का पता लगाने के लिए उन्हे डाई द्वारा रंगा जाता है।

सीधे इम्यूनोफ्लोरेसेंस(immunofluorescence) में रक्त में पीवी(PV) एंटीबॉडीज के स्तर को नापा जाता है।

निदान का सामना

आपको एक दुर्लभ क्रॉनिक बीमारी है, यह पता लगना एक चौंकाने वाला, डराने वाला तथा कभी-कभी अकेलापन महसूस कराने वाला अनुभव हो सकता है।

आप पीवी (PV) के बारे में अधिक से अधिक जानने के तथा इसका सामना करने के श्रेष्ठ उपायों के बारे में जानने के इच्छुक हो सकते हैं।

उपचार

पीवी (PV) के उपचार में आमतौर पर दो प्रकार की दवाओं के संयोग को लेना शामिल है- स्टीरॉइड(steroid) दवाएँ (मुख द्वारा लिए जाने वाले कोर्टिकोस्टिरॉइड(corticosteroid)) तथा इम्यूनोसप्रेसेंट्स (immunosuppressants)।

ये दोनों प्रकार की औषधियां आपके प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा स्वस्थ ऊतकों को होने वाले नुकसान से बचा सकती हैं।

इन औषधियों की उत्तम मात्रा का पता लगाने में कुछ समय लग सकता है। लक्षणों को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने में तथा इसके दुष्परिणामों को सीमित करने में अक्सर एक सटीक संतुलन की आवश्यकता होती है, इसलिए इस संतुलन को प्राप्त करने में कुछ महीनों का समय भी लग सकता है।

उपचार का उद्देश्य है:

  • फफोले को भरना तथा नये फफोलों को बनने से रोकना। आमतौर पर फफोलों को भरने में 8 हफ्तों तक का समय तथा नये फफोलों को उत्पन्न होने से रोकने में दो से तीन हफ्तों का समय लगता है
  • मेडिकेशन को धीरे-धीरे सबसे कम मात्रा तक लाना, जिससे लक्षणों को नियंत्रित करना संभव हो

ओरल कॉर्टिकोस्टिरॉइड्स (Oral corticosteroids -स्टेरॉइड की गोलियां)

आमतौर पर कोर्टिकोस्टिरॉइड्स(corticosteroids) कम समयावधि में प्रतिरक्षा तंत्र के हानिकारक प्रभावों को कम करने मे प्रभावी होते हैं।

उनमें हार्मोन्स का कृत्रिम रूप होता है, जो प्रतिरक्षा तंत्र की कुछ रासायनिक प्रतिक्रियाओं को बाधित कर सकता है। इन प्रतिक्रियाओं को बाधित करने से त्वचा को होने वाले और अधिक नुकसान से सामान्यतः बचाया जा सकता है।

1950 के शुरुआती समय में जब पीवी(PV) की चिकित्सा मे कोर्टिकोस्टिरॉइड्स(corticosteroids) को पहली बार शामिल किया गया था, तो इससे इस स्थिति के कारण होने वाली मृत्यु की संख्या में बहुत कमी देखी गई थी |

प्रथम चरण : अधिक मात्रा

सामान्य तौर पर आपको प्रेडनिसोलोन (prednisolone) की उच्च मात्रा (60 -100 mg प्रतिदिन) देकर शुरुआत की जाती है। आपकी स्थिति की गंभीरता पर इसकी मात्रा निर्भर करेगी।

यदि आपको 100 mg प्रतिदिन से भी अधिक की आवश्यकता होती है, तो पल्स थेरेपी (pulse therapy) एक विकल्प है। पल्स थेरेपी (Pulse therapy) में आपको बांह में ड्रिप द्वारा मिथाइल प्रेडनिसोलोन(methylprednisolone) तथा साइक्लोफॉसफामाइड(cyclophosphamide) की उच्च मात्रा देना शामिल है।

पल्स थेरेपी(Pulse therapy) का सत्र प्रत्येक महीने में 3 दिन तक दिया जाता है, ऐसा कम से कम 6 महीनों चलता है।

कुछ लोगों को कोर्टिकोस्टिरॉइड्स (corticosteroids) लेने के कुछ ही दिनों के अंदर अपने लक्षणों में सुधार दिखाई देने लगता है। औसतन, फफोलों के रुकने में दो से तीन हफ्तों का समय लग जाता है।

अगला चरण : मात्रा को कम करना

जब आपको लक्षणों से मुक्ति मिलने लगती है तो आपकी औषधि को धीरे-धीरे घटाकर सबसे कम मात्रा तक लाया जाता है जो आपके लक्षणों को अभी नियंत्रित कर सके।

सबसे कम संभावित मात्रा का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि कोर्टिकोस्टिरॉइड्स (corticosteroids) के कई अप्रिय दुष्प्रभाव होते हैं जैसे:

  • वजन बढ़ना
  • मुहांसे
  • मन:स्थिति में बदलाव, उदाहरण के लिए आप दूसरे लोगों के प्रति आक्रामक, चिड़चिड़े तथा गुस्सैल हो सकते हैं
  • मनोदशा में तेजी से परिवर्तन होना, जैसे आप एक पल में बहुत प्रसन्न होंगे और फिर अगले ही पल बहुत उदास होकर रोने लगते हैं

अंततः यदि आप के लक्षण पूरी तरह समाप्त हो जाते हैं तथा चिकित्सा के रुकने पर दोबारा से नहीं बढ़ते तो आप कोर्टिकोस्टिरॉइड्स (corticosteroids) को पूरी तरह से छोड़ने में समर्थ हो सकते हैं। हालांकि अनेक लोगों को अपने लक्षणों को नियंत्रण में रखने के लिए कोर्टिकोस्टिरॉइड्स (corticosteroids) की कम मात्रा सदैव लेने की आवश्यकता पड़ती है।

कोर्टिकोस्टिरॉइड(Corticosteroid) का लंबे समय तक प्रयोग करने पर आपमें अनेक प्रकार की स्वास्थ्य स्थितियों के उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है, जैसे :

  • हड्डियों का कमजोर होना (ऑस्टीओपोरोसिस-osteoporosis),
  • मधुमेह की शुरुआत होना अथवा मौजूदा मधुमेह का और बिगड़ जान
  • उच्च रक्तचाप

कोर्टिकोस्टिरॉइड(Corticosteroids) के विषय में एवं वे किस प्रकार कार्य करते हैं तथा उनके संभावित दुष्परिणामों के बारे में और पढ़ें।

इम्यूनोसप्रेसेंट्स (Immunosuppressants)

जैसे कि इनके नाम से ज्ञात होता है, इम्यूनोसप्रेसेंट्स(Immunosuppressants) प्रतिरक्षा तंत्र को अवरुद्ध अथवा निरुत्साहित कर देते हैं।

कोर्टिकोस्टिरॉइड्स(Corticosteroids) के साथ संयुक्त करने पर अक्सर आपकी स्टेरॉइड (steroid) औषधि की मात्रा को कम करना संभव हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि आपमें दुष्परिणामों का अनुभव करने की तथा दीर्घकालिक जटिलताओं जैसे ऑस्टीओपोरोसिस (osteoporosis) के होने की संभावना कम हो जाती है। इसे स्टेरॉइड- स्पेरींग थेरेपी (steroid-sparing therapy) कहते हैं।

पीवी(PV) की चिकित्सा में सामान्य रूप में प्रयोग किए जाने वाले इम्यूनोसप्रेसेंट्स (immunosuppressants) में निम्न सम्मिलित हैं:

  • एज़ाथायोप्रीन (Azathioprine)
  • साइक्लोफॉसफामाइड (Cyclophosphamide)
  • मायकोफीनोलेट मोफेटिल (Mycophenolate mofetil)

ये दवाएँ सामान्यतः गोलियों के रूप में ली जाती हैं। यदि एक इम्यूनोसप्रेसेंट्स (immunosuppressant) प्रभावी नहीं होता तो दूसरा प्रयोग किया जा सकता है।

इम्यूनोसप्रेसेंट्स (Immunosuppressant) आपको संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं, इसलिए इनको लेते समय आपको सावधानियां बरतने की आवश्यकता होगी, जैसे :

  • किसी सक्रिय संक्रमण से प्रभावित किसी व्यक्ति के निकट संपर्क में आने से बचना, विशेष रूप से यदि यह चिकनपाक्स अथवा शिंगलेस (chickenpox or shingles) है, क्योंकि इन दोनों संक्रमणों को उत्पन्न करने वाला वायरस आपको और अधिक बीमार कर सकता है
  • यदि संभव हो तो भीड़भाड़ वाली जगहों से बचें
  • संक्रमण के किसी भी संभावित लक्षण जैसे उच्च तापमान या सूजन के बारे में अपने चिकित्सक अथवा डर्माटोलॉजिस्ट (dermatologist) को तुरंत बतायें
  • इसके साथ ही एज़ाथायोप्रीन (azathioprine) आपकी त्वचा को सूर्य की किरणों के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है, इसलिए आपको तेज धूप वाले दिनों में सनस्क्रीन का प्रयोग करना चाहिए
  • इम्यूनोसप्रेसेंट्स(Immunosuppressants) गर्भवती महिलाओं के लिए उचित नहीं होते, क्योंकि इनसे जन्म दोष हो सकता है,यदि आप एक यौन रूप में सक्रिय महिला हैं तो इम्यूनोसप्रेसेंट्स (immunosuppressants) लेते समय आपको गर्भनिरोध के विश्वसनीय तरीके का प्रयोग करना चाहिए

अन्य उपचार

इम्यूनोसप्रेसेंट्स (Immunosuppressants) तथा कोर्टिकोस्टिरॉइड्स (corticosteroids) के साथ कभी-कभी कुछ अन्य उपचारों का भी प्रयोग किया जाता है।

इनमें शामिल हैं:

  • डेपसोन (dapsone) - एक प्रकार की औषधि, जो फफोलों को जीवाणुओं द्वारा संक्रमित होने से बचाने में सहायता कर सकती है
  • कॉलचिसिन (colchicine) - यह औषधि शरीर में सूजन के स्तर को कम कर सकती है तथा नए फफोलों के बनने को रोक सकती है

टेट्रासाइक्लिन (tetracycline) -एक प्रकार की एंटीबायोटिक, जो डेपसोन (dapsone) के समान संक्रमण से बचाव करने में उपयोगी हो सकती है

रिटुक्सिमैब (Rituximab)

रिटुक्सिमैब (Rituximab) एक नई प्रकार की औषधि है, जो बी (B) कोशिकाओं को लक्षित करके कार्य करती है। बी (B) कोशिकाएं श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार है , जिनका प्रयोग प्रतिरक्षा तंत्र पीवी (PV) के मामले में स्वस्थ त्वचा ऊतकों पर हमला करने के लिए करता है।

2011 में प्रकाशित एक शोध में यह पाया गया कि जिन मामलों में पारंपरिक चिकित्सा अप्रभावी रहती है अथवा उसके अधिक गंभीर दुष्परिणाम होते हैं उनमें रिटुक्सिमैब(rituximab) एक प्रभावशाली विकल्प है।

रिटुक्सिमैब (Rituximab) को कुछ घंटों की अवधि में सीधे आपकी नसों में दिया जाता।

यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि रिटुक्सिमैब (rituximab) को निर्देशित करने का सबसे प्रभावी तरीका क्या है। कुछ चिकित्सकों ने चार हफ्तों के इसके कोर्स के दौरान हफ्ते में एक बार इसका प्रयोग करने का भी प्रयास किया है| 

अन्य चिकित्सकों ने यह सुझाया है कि 2 महीने के इसके कोर्स के दौरान इसका प्रयोग 6 बार किया जाना चाहिए। इसके उपरांत इसकी 4 और मात्रा लेनी चाहिए, जो कि महीने में एक बार ली जानी चाहिए। इस विषय में अधिक शोध करने की आवश्यकता है।

रिटुक्सिमैब (Rituximab) लिए जाने के दौरान आपके द्वारा फ्लू के समान लक्षणों का अनुभव करना आम है। इसके संभावित लक्षणों में शामिल हैं:

  • सिर दर्द
  • बुखार अथवा ठंड लगना
  • थकान
  • मांसपेशियों में दर्द

इसके दुष्परिणामों से बचने के लिए अथवा उन्हें कम करने के लिए आपको अतिरिक्त औषधि भी दी जा सकती है, हालांकि आपके शरीर के रिटुक्सिमैब(rituximab) के आदी हो जाने पर दुष्परिणामों में सुधार हो जाना चाहिए।

वर्तमान प्रमाणों से यह पता लगता है कि रिटुक्सिमैब(rituximab) लेने के बाद 14 में से 1 व्यक्ति इसके गंभीर दुष्परिणामों का अनुभव कर सकता है, जैसे निमोनिया अथवा सेप्सिस (रक्त का संक्रमण या blood poisoining)

रिटुक्सिमैब(Rituximab) की व्यावहारिक हानि यह है कि यह औषधि अपेक्षाकृत महंगी है तथा कुछ प्राथमिक सेवा संस्थाएं चिकित्सा के लिए सहयोग करने की अनिच्छुक हो सकती हैं।

यदि लगता है कि आपको रिटुक्सिमैब (rituximab) से लाभ होगा तो आपको इस विषय में अपने डर्माटोलॉजिस्ट से विचार-विमर्श करना चाहिए।

महत्वपूर्ण सूचना: हमारी वेबसाइट उपयोगी जानकारी प्रदान करती है लेकिन ये जानकारी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है। अपने स्वास्थ्य के बारे में कोई निर्णय लेते समय आपको हमेशा अपने डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।