बच्चों का श्रवण परीक्षण (Hearing test for children)

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परिचय (Introduction)

एक नवजात शिशु की आंखों की जाँच जन्मजात मोतियाबिंद जैसी असामान्यताओं के लिए की जाती है। जन्म के समय और कई बार उनकी बढ़ती उम्र के दौरान उनके सुनने की शक्ति की भी जांच की जाती है।

हालाँकि बचपन में बच्चों में गंभीर श्रवण और दृष्टि की समस्याएं दुर्लभ हैं, प्रारंभिक परीक्षण से यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसी भी बीमारी का पता लगाया जा सके और जितनी जल्दी हो सके उसका उपचार किया जाए।

यह महत्वपूर्ण है कि बच्चों में सुनने की शक्ति से जुड़ी समस्याओं की पहचान जल्दी की जाए, क्योंकि ये सीधे उनके बोलने और भाषा के विकास से जुड़ी होती हैं। उनके देखने की क्षमता उनके सामाजिक और शैक्षिक विकास में भी सहायता करती है।

सुनने की शक्ति की नियमित जांच (Routine hearing test)

आपके बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद, उनके सुनने की शक्ति की जांच की जाती है। आपके प्रसूति इकाई (Maternity unit) को छोड़ने से पहले ये जांच की जा सकती है।

यदि जाँच के बाद चिंता का कोई कारण नहीं है, तब आपको अपने बच्चे के सुनने की शक्ति के विकास पर नज़र रखने में मदद करने के लिए एक चेकलिस्ट दी जाएगी। यह उन आवाजों को रेखांकित करता है जो बच्चे सामान्य रूप से निकालते हैं और वैसी ध्वनियाँ जिसे सुनकर, बड़े होने के क्रम में उन्हें प्रतिक्रिया करनी चाहिए।

एक बच्चे की श्रवण क्षमता जीवन के पहले वर्ष में निम्नलिखित तरीके से विकसित होनी चाहिए।

  • जन्म से: तेज आवाज पर उछलना।
  • 1 महीना: अचानक हुई और देर तक होने वाली आवाजों पर ध्यान देना शुरू कर देता है।
  • 4 महीना: आवाजों को सुनकर उत्साहित हो जाना और जानी-पहचानी आवाज को सुनकर मुस्कुराना।
  • 7-9 महीना- किसी कमरे में जानी-पहचानी आवाज़ पर या किसी जगह से धीमी आवाज आने पर तुतलाना, गड़गड़ाना और आवाज की तरफ मुड़कर देखना।
  • 12 महीना: कुछ शब्दों पर प्रतिक्रिया देना है जैसे कि खुद के नाम पर

यदि आपका बच्चा श्रवण स्क्रीनिंग टेस्ट पास नहीं करता है, तो उन्हें आगे के परीक्षणों के लिए एक ऑडियोलॉजिस्ट (Audiologist) (एक श्रवण विशेषज्ञ) के पास भेजा जाएगा।

यदि आपको अपने बच्चे के श्रवण के विकास के किसी भी चरण के बारे में संदेह है तो अपने डॉक्टर से संपर्क करिए।

नवजात शिशु की श्रवण स्क्रीनिंग जांच कैसे की जाती है,

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आँखों की नियमित जांच (Routine eye test)

आपके बच्चे की आँखों की जाँच उनके जन्म के 72 घंटों के अंदर की जाएगी।

बच्चे के 6 से 8 सप्ताह का होने के बाद एक बार फिर से उनकी आँखों की जांच आपके डॉक्टर के द्वारा की जाएगी। चार या पांच साल का होने पर स्कूल जाने से पहले फिर उनकी आँखों की जांच की जाएगी।

बच्चे के जीवन के पहले वर्ष में उसकी दृष्टि निम्नलिखित तरीके से विकसित होनी चाहिए।

  • 6 सप्ताह की उम्र में – रंग-बिरंगे और रोचक चीजों, मसलन किसी चेहरे की तरफ ध्यान देना
  • 2-3 महीने का बच्चा- चीजों को देखकर उन्हें छूने की कोशिश करना
  • 3 से 5 महीने- चेहरे के भावों की नक़ल करना और वस्तुओं को अधिक बारीकी से देखना शुरू कर देना
  • 6 से 12 महीना- उन वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करता है जो उनके नजदीक और दूर होता है, साधारण आकृतियों को देखता है, क्रेयॉन से आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचता है और तस्वीरों को पसंद करने लगता है

डॉक्टरी सलाह कब लेनी चाहिए (When to seek medical advice)

यदि किसी भी कारण से आपके बच्चे का जन्म होने के तुरंत बाद श्रवण परीक्षण नहीं हुआ है, तो अपने दाई (प्रसाविका) या डॉक्टर से कहकर जांच करने के लिए समय ले लीजिए।

यदि आपको संदेह है कि आपके बच्चे में सुनने और आंखों की रोशनी संबंधी कोई समस्या है, तो स्क्रीनिंग परीक्षण करने वाले को इसके बारे में बतायें।

बड़े बच्चों में, श्रवण संबंधी संभावित समस्या के संकेतों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • असावधानी
  • जोर से बात करना और उच्च स्वर में टी.वी सुनना
  • गलत शब्दों का उच्चारण
  • स्कूल में अस्थिर होना

आपके बच्चे में श्रवण संबंधी एक अस्थायी समस्या हो सकती है, जैसे कि कोल्ड या ग्लू इयर (कान में तरल पदार्थ का निर्माण), या उन्हें सुनने में परेशानी हो रही हो या आगे चलकर सुनने में परेशानी हो।

देखने की समस्या के संकेतों में शामिल हैं:

  • नेत्र की अनियमित गति
  • ध्वनियों के स्त्रोत की ओर न मुड़ना (श्रवण दोष की निशानी)
  • उनकी आंखों को सहलाना या रगड़ना
  • आंखों के द्वारा संपर्क नही करना

आपके बच्चे को दृष्टि की समस्या हो सकती है, जैसे की

अल्प-दृष्टि (myopia)
,
दूर देखने संबंधी समस्या (hyperopia)
,
लेज़ी आई (amblyopia
) और
स्क्विंट (जहाँ आँखें अलग–अलग दिशाओं में देखते है)।

आपके बच्चे के लिए श्रवण और दृष्टि परीक्षण क्यों आवश्यक है इसके बारें में

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यह जरुरी क्यों है? (Why it is necessary)

जब बच्चे जवान होते हैं तभी उनकी आँखों की देखने की क्षमता और सुनने की क्षमता की जांच कई बार करना आवश्यक होता है, ताकि कोई समस्या हो तो उसका पता लगाया जा सके और समय रहते उसका इलाज हो सके।

यदि परीक्षण करने पर यह पता चलता है कि आपके बच्चे की श्रवण क्षमता और दृष्टी क्षमता को कोई चीज प्रभावित कर रही है, तो आपका डॉक्टर इसकी निगरानी और उपचार करने में सक्षम हो सकता है।

वैकल्पिक रूप में, आपके बच्चे को एक श्रवण विशेषज्ञ या नेत्र विशेषज्ञ के पास भेजा जा सकता है; जो स्थिति को सुधारने के लिए आपके बच्चे को चश्मा या

सुनने में सहायता
करने वाली मशीन लगा सकता है।

विभिन्न प्रकार के श्रवण और नेत्र विशेषज्ञों के बारे में

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श्रवण या दृष्टि की समस्या की पहचान जल्दी हो जाने से ये फायदा होगा कि अगर आपके बच्चे को सीखने से जुड़ी किसी विशेष सहायता की आवश्यकता पड़ती है तो उसे आसानी से दी जा सकती है।

श्रवण (Hearing)

नियमित श्रवण परीक्षण से ये पता चलता है कि बच्चे की सुनने की क्षमता आवाज की नार्मल रेंज में है या नहीं।

श्रवण संबंधी समस्याओं को पहचानना (Recognising hearing problems)

एक बच्चे की श्रवण क्षमता उसके जीवन के पहले वर्ष के दौरान धीरे-धीरे विकसित होनी चाहिए।

जब एक बच्चा एक महीने का होता है तो ध्वनि को ध्यान से सुनता है और जिस ओर से ध्वनि आती है उस तरफ मुड़ सकता है।

लगभग 4 महीने में, वह ध्वनि को सुनकर उत्साहित होने लगता है और एक परिचित ध्वनि के जवाब में मुस्कुराने लगता है।

जब एक बच्चा 7 महीने का होता है, तो वह एक कमरे में आ रही एक परिचित आवाज या किसी भी दिशा से आ रही धीमी आवाज की तरफ मुड़ता है । लगभग 12 महीने में वह कुछ शब्दों पर प्रतिक्रिया देने लगता है, जैसे कि खुद का नाम सुनकर।

बड़े बच्चों में श्रवण हानि के लक्षण में यह शामिल हो सकता है-

  • असावधानी
  • जोर से बात करना और उच्च स्वर में टी.वी सुनना
  • गलत शब्दों का उच्चारण
  • स्कूल में अस्थिर होना

यदि आपको संदेह है कि आपके बच्चें में सुनने की क्षमता सामान्य रूप से विकसित नहीं हो रही है, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। वह या तो श्रवण दोष से ग्रसित हो सकता है, या आगे चलकर यह विकार विकसित हो सकता है या तो उसे ठंड के कारण कम सुनाई देने की समस्या हो सकती है।

श्रवण दोष के अन्य कारणों में शामिल हैं-

  • ग्लू इयर (Glu ear) – युवा बच्चों में कान के मध्य भाग में तरल का निर्माण होता है
  • संक्रमण जो गर्भ में या जन्म के समय शिशुओं में विकसित होता है, जैसे कि रूबेला (Rubella) या साइटोमेगालोवायरस (Cytomegalovirus) जो लगातार बढ़ने वाले श्रवण दोष का कारण बन सकता है
  • विरासत में मिली परिस्थितियां जैसे ओटोस्क्लेरोसिस (Otosclerosis) जो कानों या नसों को ठीक से काम करने से रोकती है
  • कोक्लेयर (Cochlear) या श्रवण नसों को नुकसान (जो श्रवण संकेतों को मस्तिष्क तक संचारित करता है); यह सिर में गंभीर चोट लगने, तेज आवाज के संपर्क में आने या सिर की सर्जरी जैसे अन्य कारकों के कारण हो सकता है

● जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी होना (जन्म के समय श्वासनली), या गंभीर पीलिया हो जाना (बिलीरुबिन नामक पदार्थ के रक्त में एक निर्माण के कारण त्वचा का पीला पड़ना)

● बीमारी, जैसे कि मेनिन्जाइटिस (Meningitis) और एन्सेफलाइटिस (Encephalitis) (जिसमें मस्तिष्क में सूजन शामिल है)

दृष्टि (Vision)

आंखों की नियमित जांच से यह पता चलता है कि आंखों में कोई दोष या विकृति तो नहीं है;

जैसे कि मोतियाबिंद (Cataract) (आंख के लेंस में धुँधलापन आ जाना), सुस्त आँख (Lazy eye) (एम्बीओपिआ) या भेंगापन (Squint) (जहाँ आंखें अलग- अलग दिशाओं में देखती है)

टेस्ट से ये भी पता चलता है कि बच्चा दृष्टि के सामान्य क्षेत्र में हलचल को फॉलो करने के लिए ऊपर, नीचे और अगल-बगल देख सकता है या नहीं। साथ में अल्प-दृष्टि (मायोपिया) और लम्बी –दृष्टि (हाइपरोपिया) का भी पता लगाने के लिए इस टेस्ट का उपयोग होता है।

माध्यमिक विद्यालय के बच्चों का भी कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट (दो अलग-अलग रंगों के बीच अंतर या रंग देखने में कठिनाई होना) किया जा सकता है।

दृष्टि समस्याओं को पहचानना (Recognising vision problems)

छोटे बच्चों को हमेशा ये अहसास नहीं होता है कि उनके देखने की क्षमता में कोई समस्या है। इसलिए ये जरूरी है कि इसके संकेतों के बारे में जागरूक रहें. संभावित दृष्टि दोष के संकेत कुछ इस प्रकार हैं:

  • अनियमित नेत्र गति (Erratic eye movements)
  • ध्वनियों के स्रोत की ओर न मुड़ना (श्रवण दोष की निशानी भी)
  • आँखों को सहलाना या रगड़ना
  • आँख से संपर्क नहीं करना

बड़े बच्चों में, दृष्टि समस्या के लक्षणों में निम्नलिखित चीजें शामिल हो सकती है:

  • नियमित सिरदर्द
  • टेलीविजन के बहुत करीब बैठना
  • स्कूल में अनुपस्थित रहना
  • पढ़ने में कठिनाई

शिशुओं और बच्चों में दृष्टि समस्याओं के संभावित कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • दीर्घ- या लघु-दृष्टि (जो आमतौर पर विरासत में मिली हैं)
  • दृष्टिवैषम्य (Astigmatism), जहां कॉर्निया (आंख के सामने की पारदर्शी परत) पूरी तरह से घुमावदार या कोरॉइडोरेटिनल डिजनरेशन (Choroidoretinal degeneration) नहीं है (जहां आंख का हिस्सा धीरे-धीरे ठीक से काम करना बंद कर देता है)
  • ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान (ऑप्टिक शोष)
  • एक ट्यूमर जो मस्तिष्क के दृष्टि केंद्र पर दबाव डालता है और दृष्टि को प्रभावित करता है
  • जन्म के समय होने वाले मोतियाबिंद (जन्मजात)
  • समय से पहले जन्म से संबंधित समस्याएं, जहां आंखों को पूरी तरह से विकसित होने का समय नहीं मिला है

दृष्टि समस्याओं का पता चलने के बाद, उपचार और शैक्षिक सहायता दी जा सकती है। यदि प्रारंभ में ही उपचार हो जाता है तो यह बढ़िया है क्योंकि अनुपचारित दृष्टि अक्सर आपकी स्थति को और भी ख़राब बना सकती है।

यह कैसे किया जाता है? (How it is performed)

ऐसे कई परीक्षण है जिनके प्रयोग से आपके बच्चे की दृष्टि और श्रवण की जाँच की जा सकती है।

श्रवण परीक्षण (Hearing test)

दो त्वरित और दर्द रहित परीक्षणों का उपयोग करके किसी भी संभावित श्रवण समस्याओं के लिए नवजात शिशुओं की जांच की जा सकती है। वे जांच हैं:

  • स्वचालित otoacoustic उत्सर्जन परीक्षण (AOE)
  • स्वचालित श्रवण मंथन प्रतिक्रिया परीक्षण (AABR)

इन्हें नीचे उल्लेखित किया हुआ है।

AOE परीक्षण

AOE परीक्षण में केवल कुछ ही मिनट लगते हैं और यह तब किया जा सकता है जब आपका शिशु सो रहा होता है। आपके बच्चे के कान में एक छोटी सी इयरपीस दे दी जाती है और उसके माध्यम से कोमल ध्वनि बजाई जाती है।

यदि आपके शिशु का कान सामान्य रूप से काम कर रहा है, तो कर्णव्रक्ष में प्रतिक्रिया ध्वनि (गूंज) उत्पन्न होगी। एक कम्प्यूटर के माध्यम से उन प्रतिक्रिया ध्वनियों को रिकॉर्ड करके उनका विश्लेषण किया जाता है।

कभी –कभी, AOE परीक्षण से परिणाम स्पष्ट नही होते हैं। ऐसे मामलों में, परीक्षण फिर से किया जाता है, या AABR परीक्षण का प्रयोग किया जा सकता है।

शिशुओं के लिए दूसरी स्क्रीनिंग श्रवण परीक्षण होना आम बात है। इसका ये मतलब नहीं है कि आपके बच्चे की सुनने की शक्ति नहीं है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि आपका बच्चा शोर के कारण परीक्षण के दौरान अस्थिर हो गया था या उसके कान मे अस्थायी रुकावट हो सकती है।

AABR परीक्षण

AABR परीक्षण के दौरान, तीन छोटे सेंसर आपके शिशु के कान और गर्दन पर लगाए जाएंगे। मुलायम हेडफोन को आपके बच्चे के कानों के ऊपर रखा जाता है और उनसे धीरे से क्लिक करने की ध्वनि बजाई जाती है।

फिर एक कंप्यूटर का प्रयोग यह विश्लेषण करने के लिए किया जाता है कि ध्वनि पर बच्चे के कान क्या प्रतिक्रिया करते हैं।

अन्य श्रवण परीक्षण नाचे वर्णित हैं।

विज़ुअल रीइन्फोर्समेन्ट ऑडिओमेट्री (Visual reinforcement audiometry)

विज़ुअल रीइन्फोर्समेन्ट ऑडिओमेट्री (Visual reinforcement audiometry) के दौरान, जब स्पीकर में ध्वनी बजती है तो आपका बच्चा आपकी गोद में बैठेगा। यदि आपका बच्चा ध्वनि की ओर मुड़ता है तो उसे इनाम के रूप में एक खिलौना दिया जाएगा।

आवाज को कम और ज्यादा करके ये जांचा जाता है कि आपका बच्चा कितनी धीमी आवाज तक को सुन सकता है। यह परीक्षण आपके बच्चे के कानों में छोटे ईयर फोन का उपयोग करके भी किया जाता है ताकि प्रत्येक कान का अलग-अलग परीक्षण किया जा सके।

ऑडिओमेट्री बजायें (Play audiometry)

यहाँ, बच्चा आवाज सुनकर उसपर प्रतिक्रिया देते हुए एक साधारण कार्य को अंजाम देता है; जिससे परीक्षक को इसके बारे में पता चल सके, आवाज को स्पीकर पर या ईयरफ़ोन पर सुनाया जा सकता है।

यदि आपके बच्चे को श्रवण संबंधी कोई समस्या होती है तो नीचे वर्णित परीक्षण किए जा सकते हैं।

प्योर टोन ऑडिओमेट्री (Pure tone audiometry)

प्योर टोन ऑडिओमेट्री (Pure tone audiometry) के दौरान, ऑडिओमीटर नामक एक मशीन विभिन्न वॉल्यूम और फ्रीक्वेंसी पर ध्वनि उत्पन्न करती है।

ध्वनि को हेडफोन द्वारा बजाया जाता है और बच्चे को सुनकर जवाब देने के लिए कहा जाता है – उदाहरण के लिए – बटन दबाकर तथा ध्वनि के स्तर को घटाकर, परीक्षक आपके बच्चे को सुनाई देने वाली सबसे धीमी आवाज़ का पता लगा सकता है।

चार वर्ष से अधिक आयु के बच्चों के लिए ही केवल प्योर टोन ऑडिओमेट्री (Pure tone audiometry) का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग अक्सर स्कूल शुरू होने से पहले बच्चे की श्रवण क्षमता को जांचने के लिए किया जाता है।

स्पीच परसेप्शन टेस्ट (Speech perception test)

स्पीच परसेप्शन टेस्ट (Speech perception test) बच्चों द्वारा उन शब्दों को पहचानने की क्षमता का आकलन किया जाता है जो वे किसी व्यक्ति के होठों को देखे बिना सुनने में सक्षम होते हैं।

शब्दों को स्पीकर या हेडफोन के माध्यम से बजाया जा सकता है, या कोई व्यक्ति अपने होठों को बच्चों को दिखाए बिना कह सकता है। शब्दों को पहचानने के लिए बच्चे को मैचिंग तस्वीरों या लिस्ट में मौजूद शब्दों को चुनने के लिए कहा जाएगा।

टीमपनोमेट्री (Tympanometry)

ईयरड्रम कितना लचीला है, ये जानने के लिए टीमपनोमेट्री (Tympanometry) टेस्ट किया जाता है।

सही सुनाई देने लिए ईयरड्रम को लचीला होना चाहिए ताकि उससे होकर आवाज जा सके।

किसी तरल पदार्थ की मौजूदगी की वजह से अगर ईयरड्रम लचीला नहीं होता है तो आवाज ईयरड्रम से न गुजर कर उससे टकराकर वापस हो जाएगी।

परीक्षण के दौरान, एक मुलायम रबर टिप के साथ एक छोटी ट्यूब को आपके बच्चे के कान के प्रवेश द्वार पर रखा जाएगा। ट्यूब फिर उस ध्वनि को मापता है जो कान से टकराकर वापस हो जाती है।

यदि अधिकांश ध्वनि टकराकर वापस हो जाती है, तो यह परीक्षक को संकेत देता है कि आपके बच्चे का ईयरड्रम (कान का पर्दा) कठोर है और

ग्लू ईयर
(कान के अंदर फ्लूइड जमा होना) हो सकती है।

दृष्टि परिक्षण (Vision Tests)

नवजात शिशुओं की आँखों की जाँच किसी भी स्पष्ट शारीरिक दोष के लिए की जाती है, जिनमें स्क्वाइन (जहाँ आँखें अलग-अलग दिशाओं में दिखती हैं), मेघावस्था (बचपन के मोतियाबिंद का एक संभावित संकेत) और लालिमा शामिल हैं।

आंखो की समस्याओं की जांच के लिए कुछ परीक्षण नीचे दिए गए हैं।

प्यूपिल रिफ्लेक्स टेस्ट (The Pupil reflex test)

प्यूपिल रिफ्लेक्स टेस्ट (The Pupil reflex test) में 10 से.मी. की दूरी से आपके बच्चे की आँखों में रौशनी चमकाई जाती है और ये देखा जाता है कि बच्चा अपनी पुतलियाँ झपकाता है या नहीं।

आपके बच्चे की आँखों की पुतलियां रौशनी पर स्वतः झपकनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह एक समस्या है; जो उनकी पुतलियों के झपकने को प्रभावित करती है।

रेड रिफ्लेक्स टेस्ट (The Red reflex test)

रेड रिफ्लेक्स टेस्ट (The Red reflex test) में ऑप्थेल्मोस्कोप नामक एक उपकरण, जिसके एक छोर पर प्रकाश होता है, का उपयोग करते हैं; जो तस्वीरों को बड़ा करता है।

जब आपके बच्चे की आंख में रौशनी दिखाई जाती है तो एक लाल रेफ़्लेक्शन दिखाई देना चाहिए, अगर उजला रेफ़्लेक्शन दिखाई देता है तो ये कैटरेक्ट होने का संकेत है। इस स्थिति में आपके बच्चे को एक विशेषज्ञ के पास भेजा जाएगा।

अटेंशन टू विज़ुअल ऑब्जेक्ट्स (Attention to visual objects)

ये एक साधारण टेस्ट है, जिसमें ये देखा जाता है कि आपका बच्चा विज़ुअल ऑब्जेक्ट्स के प्रति ध्यान देता है या नहीं। एक दाई (प्रसाविका) या डॉक्टर दिलचस्प वस्तु से आपके बच्चे का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करेंगे। फिर वे उस वस्तु को हिलाकर देखते हैं कि बच्चे की आंखें उसे फॉलो करती हैं या नहीं।

रोलिंग बॉल टेस्ट (The Rolling ball test)

लगभग दो साल की उम्र के बड़े शिशुओं और बच्चों में, रोलिंग बॉल टेस्ट का उपयोग करके उनकी आंखों की रौशनी के केंद्रबिंदु और स्पष्टता को जांचा जा सकता है।

फर्श पर कई अलग-अलग आकार की सफेद गेंदों को लुढ़काया जाता है और परीक्षक यह जांचता है कि बच्चा उनपर ध्यान देता है या नहीं। यह दृष्टि की सीमा और आपका बच्चा कितनी छोटी वस्तु को देख सकता है, को दर्शाता है।

एक और सरल परीक्षण छोटे ब्लॉक या बटन जैसी छोटी वस्तुओं का उपयोग करके किया जाता है ताकि ये पता लगाया जा सके कि बच्चा उन्हें देखकर उसे पकड़ने की कोशिश करता है या नहीं। प्रत्येक आंख को एक पट्टी से अलग-अलग ढंक कर परीक्षण किया जा सकता है।

स्नेलन और लॉगमार चार्ट (Snellen & LogMAR charts)

6 साल की उम्र के बाद आपके बच्चे को कुछ मीटर की दूरी पर रखकर एक चार्ट पढ़ने के लिए दिया जाता है; जिसमें अक्षरों और संख्याओं की पंक्तियाँ घटते आकारों में लिखी होती हैं। यही चार्ट स्नेलन और लॉगमार चार्ट (Snellen & LogMAR charts) कहलाती है।

गतिविधि परीक्षणों की सीमा (Range of movements tests)

प्रत्येक आंख की गति की सीमा का परीक्षण करने के लिए, एक बच्चे का ध्यान एक दिलचस्प वस्तु की तरफ खींचा जाता है, जिसे 8 अलग दिशाओं में घुमाया जाता है: ऊपर, नीचे, बाएं, दाएं और इन प्रत्येक बिंदुओं में दो के बीच।

प्रत्येक आंख वस्तु का कितनी अच्छी तरह अनुसरण करती है और प्रत्येक दिशा में कितनी दूर तक फैलती है, यही जांच परीक्षण में शामिल होता है।

कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट (Colour blindness test)

कलर ब्लाइंडनेस टेस्ट (Colour blindness test) जिसे कलर विज़न डेफिशियेंसी (Colour Vision deficiency) टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है, ये आमतौर पर बड़े बच्चों में तब किया जाता है जब किसी समस्या का संदेह होता है।

कलर विज़न डेफिशियेंसी (Colour Vision deficiency) उन छवियों का उपयोग करते हैं जो दो अलग-अलग रंगों में डॉट्स से बनी होती हैं। यदि बच्चे की कलर विज़न सामान्य है, तो वे चित्र के भीतर अक्षर या संख्या को पहचान सकेंगे।

एक बच्चा जो 2 रंगों के बीच अंतर नहीं बता सकता है, वह संख्या या अक्षर को नही देख पाएगा, जिसका अर्थ है कि उसे कलर विज़न डेफिशियेंसी (Colour Vision deficiency) हो सकती है।

महत्वपूर्ण सूचना: हमारी वेबसाइट उपयोगी जानकारी प्रदान करती है लेकिन ये जानकारी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है। अपने स्वास्थ्य के बारे में कोई निर्णय लेते समय आपको हमेशा अपने डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।