जब किसी पुरुष में इरेक्शन होता है तो उसका शरीर कामोत्तेजना के चार स्तरों से गुजरता है: उत्तेजना, प्लैटो, ऑर्गेज़्म या रति क्षण, स्थिरता या रेसोलुशन ।
पहला चरण -कामोत्तेजना या शारीरिक उत्तेजना
पुरुष को शारीरिक या मनोवैज्ञानिक उत्तेजना या दोनों के कारण इरेक्शन या स्तंभन हो जाता है। इससे पुरुष के लिंग के तीन स्पंजी हिस्सों जिन्हे कोरपोरा कहते हैं में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है। ये हिस्से लिंग की पूरी लम्बाई में उपस्थित होते हैं।
त्वचा बहुत शिथिल और चलायमान होती है जो लिंग को बढ़ने में मदद करती है। पुरुषों का स्कॉर्टम या अंडकोश- त्वचा का वो थैला जिसमें वीर्यकोष या टेस्टिकल्स होता है, सख्त हो जाता है, जिससे वीर्यकोष या टेस्टिकल्स ऊपर शरीर की ओर खिंचता चला जाता है।
दूसरा चरण --कामुक तीव्रता
लिंग के सिरे (ग्लेन्स) का विस्तार होना शुरु हो जाता है औऱ इसके अंदर और इर्द-गिर्द की रक्त कोशिकाओं में रक्त भरने लगता है। जिससे इसका रंग गहरा होना शुरु हो जाता है और वीर्यकोष या टेस्टिकल्स 50 फीसदी तक बढ़ जाते हैं।
वीर्यकोष या टेस्टिकल्स लगातार बढ़ता जाता है और वीर्यकोष या टेस्टिकल्स और गुदा द्वार के बीच ऊष्मा बढ़नी शुरु हो जाती है।
उसकी धड़कनें तेज हो जाती हैं, खून का दबाव तेज हो जाता है। सांसों की रफ्तार बढ़ जाती है और उसकी जंघाएं और गुदा द्वार में कसाव होने लगता है। वो रतिक्षण की ओर बढ़ने लगता है।
तीसरा चरण : रतिक्षण और स्खलन
लगातार संकुचन वीर्य को मूत्र मार्ग से बाहर निकालने के लिए दबाव बनाती है। इसी मार्ग से मूत्र और वीर्य बाहर निकलता है।
ये पेल्विक फ़्लोर की मांस पेशियों से शुक्र वाहिका नली में होते हैं जो वीर्य को वीर्यकोष या टेस्टिकल्स से लिंग में ले जाती है।
ये पुरुष ग्रन्थि में और वीर्य पुटिका/ सेमिनल वेसीकल में भी होते हैं इन दोनों से शुक्राणु में तरल पदार्थ मिश्रित हो जाता है। शुक्राणु (5%) और द्रव (95%) के इस मिश्रण को वीर्य कहा जाता है।
ये संकुचन भी रतिक्षण का ही हिस्सा होते हैं। इससे पुरुष ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि वो स्खलन को रोक नहीं सकता।
पहले पौरुष ग्रन्थि फिर पेल्विक फ़्लोर की मांसपेशी में संकुचन से ही स्खलन हो जाता है। जिससे वीर्य एक वेग के साथ लिंग से बाहर आ जाता है।
चौथा चरण- काम क्रिया के बाद स्थिरता
अब पुरुष सामान्य होने की स्थिति में आने लगता है जब लिंग और वीर्य कोष दोबारा अपने सामान्य आकार में सिकुड़ने लगते हैं। पुरुष की सांसे अभी भी तेज होता हैं, उसका ह्रदय अभी भी तेजी से धड़क रहा होता है और हो सकता है कि उसे पसीना भी आये।
ये स्खलन के बाद का वो चरण है जिसमें दोबारा ऑर्गैज़म मुमकिन नहीं है। ये एक से दूसरे पुरुष के बीच कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों या कुछ दिनों तक भिन्न हो सकता है। अमूमन पुरुष की उम्र के बढ़ने के साथ ये वक्त भी बढ़ता जाता है।
अगर एक पुरुष को उत्तेजित किया जाता है मगर वो स्खलित नहीं होता है तो पुरुष के सिकुड़नने की क्रिया और लंबी भी हो सकती है। इससे उसके वीर्यकोष या टेस्टिकल्स और पेल्विस में दर्द हो सकता है।
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अगर आपको लिंग के तनाव में आने में या तनाव (या स्तंभन) को बनाए रखने में कोई समस्या हो तो किसी सेक्स स्पेशलिस्ट से सम्पर्क करें।
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