शारीरिक कुरूपता विकार यानी बॉडी डिसमॉर्फिक डिसऑर्डर(BDD) वह स्थिति है, जिसमें कोई व्यक्ति ज्यादातर समय इस कारण परेशान रहता है कि वह दिखता कैसा है। वह अपने रंग-रूप के बारे में अच्छी सोच नहीं रखता है ।
शारीरिक कुरूपता विकार यानी बॉडी डिसमॉर्फिक डिसऑर्डर(BDD) वह स्थिति है, जिसमें कोई व्यक्ति ज्यादातर समय इस कारण परेशान रहता है कि वह दिखता कैसा है। वह अपने रंग-रूप के बारे में अच्छी सोच नहीं रखता है ।
उदाहरण के लिए, उन्हें इस बात का विश्वास हो जाता है कि मामूली सा दिखने वाला निशान भी इतना बड़ा है कि वह सबको नजर आएगा या उनकी नाक असामान्य लगती है।
यह विकार होने का मतलब यह नहीं है कि वह इंसान बेकार है या आत्ममुग्धता से ग्रस्त है।
हर शख्स अपने जीवन में एक समय में इस बात से नाखुश महसूस रहता है कि वह दिखता कैसा है , लेकिन इस प्रकार के विचार आमतौर पर आते-जाते रहते हैं और भुला दिए जाते हैं।
हालांकि कुछ लोग जो इससे ग्रस्त होते हैं, उनको दोष युक्त होने का विचार तनाव पैदा करता है और उनका यह विचार जाता ही नहीं।
ऐसे व्यक्ति को लगता है कि वह बदसूरत है या उसमीं कोई ख़राबी है और अन्य लोग उन्हें इसी प्रकार से देखते हैं।
इस विकार के कारण तनाव भी हो सकता है, ऐसे शख्स को आत्महत्या के विचार भी आने लगते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक, देश-दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा तो नहीं है, लेकिन अमूमन इससे संबंधित सही सही आंकड़े कई बार सामने नहीं आते क्योंकि इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति अपनी बात दूसरों से छुपाते हैं। यह महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले अधिक प्रभावित करता है।
यह विकार किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है किंतु आमतौर पर यह किशोरावस्था में शुरू होता है जब लोग अपने रूप रंग के बारे में बहुत संवेदनशील होते हैं।
यह उन लोगों में पाया जाना आम बात है, जिन लोगों में तनाव और सामाजिक भय का इतिहास हो। यह ज्यादातर OCD के साथ ही हो जाता है या समन्यक्रित चिंता विकार(generalised anxiety disorder) के साथ और साथ ही ईटिंग डिसऑर्डर के साथ भी हो सकता है जैसे कि एनोरेक्सिया या बुलिमिया(anorexia or bulimia)।
इस विकार से ग्रसित व्यक्ति:
हालांकि यह विकार OCD(obsessive compulsive disorder) के समान नहीं होता पर उनमें कई समानताएं होती है। उदाहरण के लिए वह व्यक्ति अपने कार्य को कई बार दोहराता है। जैसे कि अपने बाल बनाना मेकअप करना या अपनी त्वचा को मुलायम रखना।
यह आपकी रोज़ाना की जिंदगी पर तो गंभीर असर डालता है और अक्सर आपके काम, सामाजिक जीवन और रिश्तो को भी प्रभावित कर सकता है।
आमतौर पर इस डिसॉर्डर के होने का कोई कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह अनुवांशिक हो सकता है या कई बार दिमाग में रासायनिक असंतुलन के चलते भी ऐसा होता है।
गुज़रे समय में घटित घटनाएँ भी इस सब में भूमिका अदा करती हैं । उदाहरण के लिए यह विकार आपके बचपन में घटित किसी छेड़छाड़ या आपको डराने धमकाने की किसी घटना का नतीजा हो सकता है।
यदि आपको लग रहा है कि आप इस विकार से ग्रसित है तो आपको अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए।
वह इस बात पर विचार विमर्श करेंगे कि आपकी स्थिति कितनी तनावपूर्ण है और आपकी जिंदगी इससे कितनी प्रभावित हो रही है। इस बात की जांच करेंगे कि आपको इनमें से कौन सी स्थिति है:
इससे आपके डॉक्टर को भी आप का सही इलाज निर्धारित करने में मदद मिलेगी।
पहला चरण- CBT और स्वयं सहायता
डॉक्टर आपको शुरुआती तौर पर CBTऔर स्वयं सहायता की किताबें या कंप्यूटर प्रोग्राम की सलाह दे सकते हैं।
CBT एक बातचीत की थेरेपी है जो आपको अपनी सोच और व्यवहार में बदलाव करके समस्या को काबू में करने मैं मदद करती है। आप अपने डॉक्टर के साथ कुछ लक्ष्यों को निर्धारित करने पर सहमति बना सकते हैं। उदाहरण के तौर पर एक लक्ष्य बना सकते हैं, जिसमें आप अपने रूप रंग को बार-बार जाँचना बंद करें।
कुछ लोगों को स्वयं सहायता समूह से जुड़ने पर लाभ हो सकता है जिसमें उन्हें इसी बीमारी से ग्रसित लोगों से भावनात्मक जुड़ाव और व्यवहारिक सलाह मिलती है।
यदि CBT और स्वयं सहायता के तरीके नकारा साबित होते हैं तो आपको अधिक प्रभावशाली CBT की सलाह दी जा सकती है या SSRI अवसाद रोधी दवाओं (संभवतः फ्लुओसेटीन, antidepressant probably fluoxetine) की। इन दोनों के संयोजन की भी सलाह दी जा सकती है।
SSRI को प्रतिदिन लेना होता है और इसके असर को शुरू होने में 12 हफ्ते लग सकते हैं।यदि यह असरदार साबित होता है तो आपको यह इलाज 12 महीने तक लेना होगा ताकि आगे सुधार जारी रहे। इतना ही नहीं इस विकार को दोबारा वापस आने से रोक सकें।
जब आप का इलाज पूरा हो जाए और आप के लक्षण काबू में आ जाए तो SSRI को धीरे धीरे कम कर दिया जाता है ताकि बंद करने के दुष्प्रभाव कम हो।
30 साल से कम उम्र के व्यस्कों को SSRI लेते समय सावधानी पूर्वक निगरानी की आवश्यकता होती है क्योंकि इलाज के शुरुआत में आत्महत्या के विचार या खुद को नुकसान पहुंचाने से जुड़े ख्याल आने का खतरा रहता है।
आपको इस विकार के इलाज के लिए विशेष प्रकार के अस्पताल भेजा जा सकता है।
यदि आपको दो या दो से अधिक SSRI अवसाद रोधी दवाओं से भी फ़ायदा नहीं होता, तो आपको एक अन्य प्रकार की एन्टीडिप्रेसेंट दवाएँ जैसे क्लोमीप्रामाइन(clomipramine) या कम खुराक वाली एंटीसाइकोटिक(antipsychotic) दवाएँ दी जा सकती है। इन दवाओं के दुष्प्रभाव के बारे में अपने डॉक्टर से बात करें।
महत्वपूर्ण सूचना: हमारी वेबसाइट उपयोगी जानकारी प्रदान करती है लेकिन ये जानकारी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है। अपने स्वास्थ्य के बारे में कोई निर्णय लेते समय आपको हमेशा अपने डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।